For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे -आशुतोष

२१२२  ११२२  ११२२  २२

मैं तो दीवाना हूँ मुझको न जलाओ ऐसे

मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे

चांदनी रात में ऐ चाँद यूं छत पे आकर

मेरे सोये हुए अरमाँ न जगाओ ऐसे

रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही

दिल से धुंधली मेरी यादें न मिटाओ ऐसे

अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो

मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे

तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता

पर न आँखों के गुहर अपने लुटाओ ऐसे

बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना

अजनबी  हूँ न जमाने को जताओ ऐसे

रात इक ख्वाब ने सोने न दिया है मुझको

बस अभी सोया हूँ मुझको न जगाओ ऐसे

दिल धडकते हैं कई देख तुम्हे महफ़िल में

लोग जल जाते हैं मुझको न बुलाओ ऐसे 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 842

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 4, 2015 at 10:58am

आदरणीय समर कबीर जी ..आपकी प्रतिक्रियाओं से मुझे हमेशा ही कुछ न सीखने को मिलता है ..अपनी रचनाओं पर हमेशा ही आपकी प्रतिक्रियाओं का मैं इंतज़ार करता हूँ एवं अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर भी आपकी प्रतिक्रियाओं से भी सतत कुछ न कुछ सीख रहा हूँ ..आपके सुझाव बहुत बढ़िया हैं ..मैं इस ग़ज़ल में संशोधन कर लूँगा ..आप का स्नेह और मार्गदर्शन सतत मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 2, 2015 at 9:28pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..आपकी प्रतिक्रिया से मैं बहुत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ काफी दिनों गुनगुनाने के बाद ही ये ग़ज़ल पोस्ट की थी ..ईता दोष के सम्बन्ध में बिद्वत जनों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा हूँ ..आपने बढ़िया मशविरा दिया है ..मार्गदर्शन और हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 2, 2015 at 9:23pm

आदरणीय मनोज जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपका सुझाव अच्छा है अभी इस पर बिद्वत जनो के मशविर का इंतज़ार कर रहा हूँ / सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on August 2, 2015 at 7:58am
बहुत सुन्दर गजल हुई आदरणीय । बधाई स्वीकार करें
Comment by Samar kabeer on August 1, 2015 at 11:17pm
जनाब आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
तीन मिसरों की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा :-

(1)"रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही"

:-इस मिसरे में 'बैसे ही' को "वैसे ही" कर लें"

(2)"अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो"

:- इस मिसरे में "अब्र-ए-ज़ुल्फ़" की तरकीब सही नहीं है,अब्र शब्द में इज़ाफ़त ज़रूर लगती है लेकिन ये देखना होगा कि "इज़ाफ़त" के बाद का शब्द कौन सा है,ये देखना भी ज़रूरी है,इस मिसरे को अगर इस तरह कर लेंगे तो बहतर होगा ,इसमें आपके भाव भी वही रहेंगे :-

"ज़ुल्फ़ के अब्र में यूँ ख़ुद को छुपा लेते हो"

(3)"तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता"

:- इस मिसरे पर भी ऊपर वाले मिसरे की बात लागू होती है,इस मिसरे को इस तरह कर लें :-

"तुम समंदर के गुहर हो ये सभी को है पता"

बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 11:13pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra  जी इस बज़्म-ए-सुखन को एक बहतरीन इंतेखाब से नवाज़ा है ..हर शेर अपने में पूरे खयालात समेटे हुए है...."

बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना

अजनबी  हूँ न जमाने को जताओ ऐसे

रात इक ख्वाब ने सोने न दिया है मुझको

बस अभी सोया हूँ मुझको न जगाओ ऐसे"..क्या बात है ...दिली दाद वसूल पाइयेगा !!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 8:58pm

बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना

अजनबी  हूँ न जमाने को जताओ ऐसे

 बेहतरीन सर! तहेदिल से गज़ल पर ढ़ेरों दाद प्रेषित हैं!

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 5:05pm
मुझको न
कई बार प्रयोग हुआ हैं
इस पर भी विचार किया जाये
बेहतरीन ग़ज़ल की हार्दिक बधाई
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:02pm

आदरणीया आशुतोष जी, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है, पूरी ग़ज़ल कई बार गुनगुनाई और झूम गया. इस रसीली ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया. इस बेहतरीन ग़ज़ल के एक एक शेर पर दिल से दाद दे रहा हूँ. इस मुहब्बत की ग़ज़ल से सच में मुहब्बत हो गई. आपको बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर. आपकी शानदार ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल हो गई है. वाह वाह वाह 

मतला में शायद ईता दोष की सम्भावना है इसलिए कुछ इस तरह या इससे बेहतर जैसे भी मगर मतले में एक छोटे से संशोधन की आवश्यता होगी. यदि दोष नहीं है तो बहुत बढ़िया.... थोड़ा गुणीजनों की इस्लाह की प्रतीक्षा कीजियेगा. 

मैं तो दीवाना हूँ यूं कहर न ढाओ ऐसे

मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे

बहरहाल इस शानदार, जानदार, मजेदार, रसदार और लाज़वाब ग़ज़ल पर बहुत बहुत दाद और दुआएं ....

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 5:02pm
एक निवेदन है
पता नहीं उचित है या नहीं
ऐसे की जगह अगर इस तरह रदीफ़ हो तो कैसा रहेगा
क्षमा प्रार्थना सहित
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
16 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service