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पलक झपकते ही वो सब हो गया जो उसकी कल्पना में भी नही था। तेज गति से चलते टैम्पो में पलटते ही आग लग गयी और रोड़ पर भगदड़ मच गयी। जलती आग की ओट में घिरे उस नन्हे बच्चे को देख एकबारगी उसकी सांसे भी थम गयी।वो निशक्त सा हो गया। लेकिन बच्चे को जीवन मृत्यु के बीच झूलते देख उसने अपने अंदर की सारी शक्ति को समेटा और आग में कूद पड़ा।......
शहर भर में उसकी हिम्मत की चर्चा होने लगी। हर कोई जानना चाहता था उसकी हिम्मत, उसके जज्बे का राज।
"क्या बताऊं मैं?" रो पड़ा फूट फूट कर वो। "मेरा दस बरस का बेटा था मेरी हिम्मत! जिसे... जिसे दो बरस पहले जलती आग में जलता हुआ देखता रहा मै! हाँ मैं, एक कायर इंसान।"
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:51pm

अब जागो तभी सवेरा ,,,बेहतरीन लघुकथा पर आपको बधाई |

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 2, 2015 at 10:37pm
आदरणीय विनय कुमार जी कथा का मर्म समझने के लिये और एक सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 2, 2015 at 10:28pm
आदरणीया कान्ता राय जी और आदरणीया महिमा श्री जी कथा पर आप के इन स्नेहिल शब्दो के लिये तहे दिल से आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 2, 2015 at 10:24pm
आदरणीय मिश्रा सर जी कथा पर प्रोत्साहित करते शब्दो सहित आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 2, 2015 at 10:19pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्माजी प्रोत्साहित करने के लिये आपका दिल से हार्दिक आभार।
Comment by विनय कुमार on July 2, 2015 at 9:17pm

वाह , बहुत उम्दा रचना | वो कायर जरूर था लेकिन उस घटना ने उसे बदल कर रख दिया और फिर बचा सका बच्चे को | बधाई इस रचना के लिए आदरणीय वीर मेहता जी .

Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 9:14pm

हृदयस्पर्शी ... प्रस्तुति

Comment by kanta roy on July 2, 2015 at 5:15pm
हौसलों से भरपूर बेहद सं वेदनशील लघुकथा हुई है आपकी आदरणीय वीर मेहता जी । बधाई स्वीकार करें ॥
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 1:08pm

सुन्दर लघुकथा आ० वीरेन्द्र जी! व्यक्ति अपनी भूल,गलतियों से ही सीखता है!बधाई!

Comment by Shyam Narain Verma on July 2, 2015 at 11:24am

इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई

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