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भगवान की तलाश :लघु कथा: हरि प्रकाश दुबे

“वो देख सामने जहां सूरज निकल रहा है , वहीँ अपना घर है, बेकार में भटका मैं दर –दर, सबने कितना समझाया था, मां - पिता और पत्नी कितना रोई थी, पर मुझे तो भगवान की तलाश करनी थी, पर कहीं नहीं मिला बल्कि लोगों ने कभी भिखारी तो कभी ढोंगी समझा, अरे भगवान् कहीं होगा तो घर में भी मिल जाएगा, अब चल वहीँ काम और ध्यान करेंगे ,चल बेटा अब घर चलें ,तूने भी बड़ा साथ निभाया , वो देख सामने नाव भी आ रही है चल तेज़ चल, और आज ही ये गेरुआ वस्त्र इसी गंगा माँ को समर्पित कर दूंगा !”

“इतना सुनते ही उस साधु का कुत्ता बड़ी जोर से भौंका जैसे उस साधु की बात का समर्थन कर रहा हो , और गंगा किनारे के पंछी आसमान में उड़ गए जैसे उनके लिए मार्ग खाली कर रहें हों !”

दोनों के जीवन में एक नया सवेरा हो चुका था !

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 1:19am

मन न रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा  को समर्थन देती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय हरि प्रकाशजी.

बहुत खूब !

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:36am

काश ये सब समझ पाते तो इस तरह जीवन से पलायन नहीं करते , बहुत सुन्दर आदरणीय..

Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 10:55pm

आपका  बहुत - बहुत  आभार  आ. मिथिलेश  भाई  ! सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 18, 2015 at 10:35pm

आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी बहुत ही बेहतरीन लघुकथा हुई है 

स्वयं में भगवन है बस तलाश करना है 

बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 18, 2015 at 5:19pm

आदरणीय हरी प्रकाश जी जिस प्रकार से ये रचना कम शब्दों में ही ये निर्णय कर देती है की...... इश्वर की प्राप्ति हमें भगवा पहन कर  नहीं होगी वरन ये तो हमें घर में ही प्राप्त हो सकते है यदि हम सच्चे मन से उन्हें तलाश करना चाहे, ... वो बहुत ही सराहनीय है .

इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक  बधाई स्वीकार करे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 18, 2015 at 11:35am

बहुत सुन्दर , आदरणीय हरि भाई , सच बात है , असली तलाश तो खुद मे ही करना  होता है , वहीं से हम सब भागे हुये हैं !! चलो किसी की आँख तो खुली , कभी हमारी भी खुलेगी ॥ आपको हार्दिक बधाई , रचना के लिये ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 18, 2015 at 10:00am

achhee rachnaa

Comment by shree suneel on May 17, 2015 at 11:00am
आदरणीय हरि प्रकाश जी, बहुत हीं सुन्दर लघु-कथा. ये संदेश देती कि घर में हीं ईश्वर हैं. वैराग्य जरूरी नहीं.
"अरे भगवान् कहीं होगा तो घर में भी मिल जाएगा, अब चल वहीँ काम और ध्यान करेंगे... " बहुत महत्वपूर्ण पंक्ति है ये.
आपकी अच्छी लघु-कथाओं में एक. हार्दिक बधाइयाँ आपको.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:15pm

बहुत सुंदर लिखा ,आदरणीय हरिप्रकाश जी. सच! मैंने अपने आस-पास ऐसे कई ईश्वर की तलाश में भटक रहे लोगों को देखा है. और वो गृहष्थ जीवन की जिम्मेदारियों को भूल भी चुके है. प्रस्तुति पर बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 16, 2015 at 9:18pm

आ० दुबे जी

तेरा साईं  तुज्झ में देख सके तो देख  i

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