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लोगों के दरमियान उड़ाई हुई तो है
हाँ ये खबर जफ़ा की, बनाई हुई तो है
हों तेरे दिल में रश्क़ो हसद तो हुआ करे
आखिर ये आग तेरी लगाई हुई तो है
सच ही कहा ये आपने आज़ार देखकर
इक चोट मेरे दिल ने भी खाई हुई तो है
गलियों में ये पड़े हुए खाशाक* देखिये *कूड़ा करकट
इस शह्र में कहीं पे सफाई हुई तो है
चटखी हैं उँगलियाँ वो भुजायें फड़क गईं
शामत किसी की “आप” में आई हुई तो है
काली घटा ठहर गई है आसमान पर
आखिर बरसती क्यों नहीं छाई हुई तो है
किरदार याद आ रहे हैं एक-एक कर
रूदाद ये किसी की सुनाई हुई तो है
खामोश हो गये मेरे आने से क्यों सभी
हाँ मुझसे कोई बात छुपाई हुई तो है
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी अभी मैं उस्ताद जैसे भारी भरकम शब्दों के काबिल नहीं हुआ हूँ, ये आपकी मुहब्बत है जो आप इस खाकसार को इतना मान दे रहे हैं। आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया डॉ प्राची जी काफी समय बाद आपको देख कर अच्छा लगा आप जैसे रचनाकारों की कमी अक्सर महसूस होती है, रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
क़्या बात है , आ. शिज्जु भाई , बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ।
खामोश हो गये मेरे आने से क्यों सभी
हाँ मुझसे कोई बात छुपाई हुई तो है --- लाजवाब शे र ॥ ढेरों बधाई ॥
वाह !! क्या खूबसूरत गजल हुई है ,,सादर बधाई आपको आ. शिज्जु "शकूर जी |
खामोश हो गये मेरे आने से क्यों सभी
हाँ मुझसे कोई बात छुपाई हुई तो है
क्या कहने भाई वाह वा
आदरणीय शिज्जू शकूर जी
चटखी हैं उँगलियाँ वो भुजायें फड़क गईं
शामत किसी की “आप” में आई हुई तो है................. हालात-ए-हाजरा पे बहुत सटीक शेर हुआ है
खामोश हो गये मेरे आने से क्यों सभी
हाँ मुझसे कोई बात छुपाई हुई तो है...................... बहुत खूबसूरती से 'बात छुपाए जाने के पल को' शेर में बाँधा है
उम्दा ग़ज़ल हुई है
बहुत बहुत बधाई
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