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प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
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प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
ख्वाब तो हो, सच्चा न सही मुबहम ही सही
लम्स तेरा जिसमें न मिले वो चीज़ ग़लत
आब हो या महताब हो या ज़म ज़म ही सही
मेरे सहन में आज उजाला , कुछ तो करो
धूप अगर हलकी है उजाला कम ही सही
कुछ तो इधर अब फूल खिले सह्राओं में भी
काँटों लदी हो डाल खिले कम कम ही सही
तेज़ बहुत रफ़्तार लगी खुशियों की उधर
कुछ तो बहे अपनी भी गली , मद्धम ही सही
है तो फिरी दुनिया की नज़र चल मान लिया
मेरी वफ़ा कायम है अगर कायम ही सही
ता कि ये हथकड़ियाँ भी शिकायत कर न सके
जब न कलाई कोई जँची, तो हम ही सही
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , आपकी उपस्थिति से गज़ल गौरवांन्वित हुई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय गिरिराज सर, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, कठिन बह्र को किस खूबसूरती से निभाया है आपने. मैं मुग्ध हूँ इस ग़ज़ल पर. ये मेरी होमवर्क ग़ज़ल है. इस सप्ताह इसी पर काम करना है. फिलहाल नमन आपको इस कठिन बह्र को इतनी सहजता से निभाने के लिए.
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना बहुत 2 बधाई आदरणीय |
क्या रदीफ़ लिया है आपने और किस सहजता से निभाया है इसे आपने, आदरणीय गिरिराजभाईजी !
दिल से दाद कुबूल करें
जनाब समर कबीर जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय अजय भाई , ग़ज़ल कीसराहना के लिये आभार आपका । नीचे आ. श्याम भाई के कहने पर कटःइन शब्द का अर्थ दिया हूँ , आपके लिये भी दे रहा हूँ --
मुबहम-- धुँधला , अस्पष्ट
लम्स -- स्पर्ष , छुवन
सह्राओं -- मरुस्थ्लों
ab to apki urdu din b din kathin hoti ja rahi hai .....lekin bhav istar par inhe samajhna ab bhi aasan lagta hai becuase aap likhte hi inta saaf aur asardar hai
आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
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