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मुझे लूटो कि कांधों में अभी जुन्नार बाक़ी है
मेरे सर पे अभी पुरखों की ये दस्तार बाक़ी है
लड़ाई के सभी जज़्बे तिरोहित हो गये यारों
अना से मेल खाता सा कोई हथियार बाक़ी है
इशारों ने इशारों की बहुत बातें सुनी, लेकिन
अभी गुफ़्तार में शामिल बहुत इक़रार बाक़ी है
दरारें जिस तरह खाई बनीं इस से तो लगता है
अभी भी बीच में अपने कोई दीवार बाक़ी है
गदा बन कर तेरे दर पे बहुत आया मेरे मौला
मेरे घर में, तेरा आना, मगर इक बार बाक़ी है
क़िसी टुट पूंजिये को घेर कर इतना न इतराओ
अभी उस पार सीना ठोकता सरदार बाक़ी है
अलाने डे फलाने डे मनाते यूँ न बहको तुम
मेरे बच्चों अभी राखी सा भी त्यौहार बाक़ी है
सँभलना, छू नहीं बातों को मेरी, दूर ही रहना
पुरानी है बहुत लेकिन अभी भी धार बाक़ी है
किनारा तो किनारा है समझना क्या इसे यारों
सफ़ीनों के समझने को अभी मझधार बाक़ी है
जमाने के सभी फेंके हुये पत्थर हटाया, पर
मेरे अपने ने फेंका था वही इक ख़ार बाक़ी है
कहीं ऐसा न हो नफ़रत तुम्हारी ख़ुद बदल जाये
मेरे सीने में सागर सा अभी तक प्यार बाक़ी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय सुनील शाहाबादी भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
मुझे लूटो कि कांधों में अभी जुन्नार बाक़ी है
मेरे सर पे अभी पुरखों की ये दस्तार बाक़ी है.....बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आदरणीय गिरिराज सर , हर शे'र लाजवाब ,इस सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई आपको ! सादर
वाह वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आ० गिरिराज जी ,किसी इक शेर की बात करुँगी तो दूसरे की तौहीन होगी फिर भी अंतिम शेर को तो हासिले ग़ज़ल का शेर कहूँगी तहे दिल से दाद कबूलें
आदरणीय विनय भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका बहुत आभार ॥
आदरणीय दिनेश भाई , आपका बहुत बहुत आभार ॥
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