22 22 22 22 22 2
ये कैसी महफिल में मुझको ले लाया
हर कोई लगता है गुमसुम, थर्राया
सब रस्ते इन शहरों के बातूनी हैं
गाँवों की गलियों को सब ने फुसलाया
साहिल साहिल बात चली है लहरों में
तूफ़ाँ ने जब तोड़ी कश्ती, इतराया
क्या जज़्बा हाथों से बहते रहता है ?
धोते ही हाथों को पानी गँदलाया
दोनों कूदे संग प्रेम की खाई में
प्रश्न कहाँ तब, किसने किसको बहकाया
बाग़ों, फूलों, पगडंडी की बातें कर
धुयें उगलती चिमनी से मन उकताया
झूठ बहुत वाचाल मिला जो झूठों में
सच के आगे वही झूठ था हकलाया
धीरे धीरे यादें सब मिट जायेंगी
जैसे वक़्त हुआ तो माजी धुँधलाया
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