“मंत्री जी, शानदार पुल बनकर तैयार है, आपके नाम की शिला भी रखवा दी है, बस जल्दी से उद्घाटन कर दीजिये !”
“अरे यार देख रहे हो कितना व्यस्त चल रहा हूँ आजकल, लेन-देन तो हो गया है न, फिर तुम्हे उद्घाटन की इतनी चिंता क्यों है ?”
“साहब, चिंता उद्घाटन की नहीं है, बारिश की है !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , रचना पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया ,प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर
वाह क्या बात है बहुत बढ़िया लघुकथा
सटीक और व्यंग्यपूर्ण अच्छी लघुकथा ... हार्दिक बधाई
आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी,
पक्के लेन देन का कच्चा निर्माण..
सुन्दर कथा है,
सादर.
सुंदर व्यंग्य पूर्ण और सधी हुई लघुकथा लगी बाकी कुछ दोष-कमियाँ होंगी तो ज्ञानी मित्र स्वयं इंगित करेंगे |बधाई |
बहुत सुन्दर , आदरणीय हरि प्रकाश भाई बढिया व्यंग्य है ! आपको हार्दिक बधाई , लघुकथा के लिये ॥
आदरणीय वीरेन्द्र मेहता जी , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी बहुत सुन्दर कथा | .............."साहब, चिंता उद्घाटन की नहीं है, बारिश की है !” इस अंतिम पंक्ति ने जबरदस्त चोट के साथ कथा को बेमिसाल खूबसूरती प्रदान की है | मेरी और से बधाई स्वीकार करे.
आधुनिक काम काज की वास्तविकता प्रस्तुत करती सुन्दर लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाई आ. दूबे जी |
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