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दीवारें चहकने सी लगे  

मकान जब घर बनता है 
तेरे आने से घर मेरा 
जन्नत बनता है 

खुशियाँ , सावन की 
घटाएँ बनने लगी   
किलकारी से तेरी  
मेरी दुनिया सजने लगी  

खिड़कियाँ घर की 
उम्मीद का सूरज लाए
सुगन्धित मस्त पवन 
गीत बहारों के गुनगुनाएँ

आँगन में फागुन 
रंग नए बिखरा गया 
बसंती खेत की तरह   
मेरे घर को वो लहरा गया
सरसों की फसल सम  
मनभावन सा घर 
पूज्य है मुझको मेरा छोटा सा घर ..

डिम्पल गौर ‘अनन्या’ ३०/१/१५

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

 

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Comment

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Comment by डिम्पल गौड़ on January 31, 2015 at 12:40pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 30, 2015 at 8:39pm

सुंदर कोमल भाव. बधाई आदरणीया डिम्पल जी

Comment by Hari Prakash Dubey on January 30, 2015 at 6:38pm

आदरणीया डिम्पल गौर जी , सुन्दर भाव , सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई ! सादर 

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