For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : गैरत (गणेश जी बागी)

शेखर वेश्यावृति पर केन्द्रित एक किताब लिख रहा था, किन्तु उसे पत्रकार समझ इस धंधे से जुड़ी कोई भी लड़की कुछ बताना नहीं चाहती थी, आखिर उसने ग्राहक बन वहाँ जाने का निर्णय लिया.

“आओ साहब आओ, पाँच सौ लगेंगे, उससे एक पैसा कम नहीं”
शेखर ने हाँ में सर हिलाया और उसके साथ कमरे में चला गया.

“सुनो, मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ”

“बाssत ?”

“हां, कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ”

“ऐ... साहेब, काहे को अपना और मेरा समय खोटी कर रहे हो, आप अपना काम करो और यहाँ से निकलो”

बहुत आग्रह के बाद भी जब वो कुछ भी बताने को तैयार नहीं हुई तो शेखर उठा और उसकी हथेली पर पाँच सौ का नोट रखकर चलने लगा.
“ऐ साहेब, ये पैसे आप वापस रखों, मैं बगैर काम पैसे नहीं लेती”.

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : वात्सल्य

Views: 1365

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2015 at 10:43am

शीर्षक से पूर्णतः न्याय करती हुई प्रभावशाली लघु कथा |हार्दिक बधाई आ० गणेश बागी जी ...पेशा कोई भी हो गैरत/ईमान बचा रहे ये बहुत बड़ी बात है|  

Comment by vijay on January 28, 2015 at 9:53am
बेहद उम्दा
अच्छी रचना

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2015 at 1:40am

आदरणीय बागी सर, लघुकथा को पढ़ते हुए अंतिम पंक्ति शीर्षक को झटके से उभारती है. जिस बिंदु पर पाठक को झन्नाटेदार झटका लगना चाहिए, लगता है वो भी जोरदार. इस लिहाज से सफलतम लघुकथा. इसके लिए हार्दिक बधाई.

दो वाक्य में आप शब्द मुझे अधिक/अनावश्यक लग रहा है और कथ्य के प्रभाव को कम कर रहा है. एक पाठक के रूप में मेरे विचार से निवेदित है-

“ऐ... साहेब, काहे को अपना और मेरा समय खोटी कर रहे हो, आप अपना काम करो और यहाँ से निकलो”

“ऐ साहेब, ये पैसे आप  वापस रखों, मैं बगैर काम पैसे नहीं लेती”.

Comment by somesh kumar on January 27, 2015 at 11:08pm

पत्रकार अपनी गैरत नहीं जाने देता और वो बेबस स्त्री अपनी गैरत से खैरात ठुकरा देती हैं |इस लिहाज़ से कथा अच्छी लगी |किताब के शीर्षक को छोडकर आपने कहीं भी समाजिक गाली -"वेश्या" का प्रयोग नहीं किया |इस लिहाज़ से ये कथा और अच्छी लगी |देह-व्यापार को विवश स्त्री को भी सम्मान देती और उसकी गैरत को ऊँचा उठाती ये लघुकथा obo की उम्दा लघुकथा में शामिल होगी ऐसा यकीन है |

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 9:36pm

अपने शीर्षक को चरित्रार्थ करती है लघु कथा, एक संदेश भी देती है कथा. बधाई, आदरणीय गणेश जी बागी जी, सादर।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 9:22pm

आदरणीय विनोद खंगवाल जी, आप जैसे लघुकथाकार की टिप्पणी मायने रखती है, आपकी आलोचना का सदैव ही स्वागत है.

//अंत में कुछ भटकाव आ गया और कथा एक वेश्या की गैरत के रूप में ऊभर कर ही रह गई है।//

आदरणीय शायद आपका ध्यान उन्वान पर नहीं गया, इस लघुकथा का उन्वान "गैरत" ही है.

आप जिन पक्तियों को अनावश्यक समझ रहे हैं उसपर मैं अभी कुछ भी नहीं कहना चाहूँगा, विद्वजनों की प्रतिक्रिया प्रभावित हो सकती है, वह प्रश्न मैं उनके लिए छोड़ता हूँ :-)
आपकी इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 9:12pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई साहब, आपकी विवेचनात्मक टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार आपका.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 9:10pm

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी, आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया प्राप्त हुई, मन मुग्ध है, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 9:09pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्तारिया जी प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार.

आदरणीय विनय कुमार जी, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार.

आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार.

Comment by विनोद खनगवाल on January 27, 2015 at 8:54pm
आदरणीय गणेश बागी जी लघुकथा की शुरुआत एक बेहतरीन कथा किताब लेखन को लेकर हुई थी जो कहीं गुम सा हो गया। अंत में कुछ भटकाव आ गया और कथा एक वेश्या की गैरत के रूप में ऊभर कर ही रह गई है।
///शेखर वेश्यावृति पर केन्द्रित एक किताब लिख रहा था, किन्तु उसे पत्रकार समझ इस धंधे से जुड़ी कोई भी लड़की कुछ बताना नहीं चाहती थी, आखिर उसने ग्राहक बन वहाँ जाने का निर्णय लिया./// जिसके कारण इन पंक्तियों का महत्व नहीं रह गया है। इनके बिना भी लघुकथा पूर्ण ही है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
16 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service