For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर आधी रात को उनकी आँख खुल गयी , पसीने से तरबतर वो बिस्तर से उठे और गटागट एक लोटा पानी हलक में उड़ेल दिया | ये सपना उन्हें पिछले कई सालों से परेशान कर रहा था | अक्सर वो देखते कि एक हाँथ उनकी ओर बढ़ रहा है और जैसे ही वह उनके गर्दन के पास पहुँचता , घबराहट में उनकी नींद खुल जाती |
अब वो जिंदगी के आखिरी पड़ाव में थे और अब खाली समय था उनके पास | रिटायरमेंट के बाद वो और पत्नी ही रहते थे घर में , बच्चे अपने अपने जगह व्यस्त थे | पत्नी भी परेशान रहती थी उनकी इस हालत से और कई बार पूछती थी कि क्यों इस तरह उठ जाते हैं वो | लेकिन जो राज़ उन्होंने पिछले कई सालों से अपने सीने में दफ़न कर रखा था , उसे बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे |
उनके निगाहों के सामने वो सालों पुराना दृश्य घूमने लगा | काफी लम्बे सफर से लौट रहे थे और रात भी ज्यादा हो गयी थी | हल्के नशे की हालत में उनकी कार किसी से टकराई और फिर उनकी नज़र सड़क के किनारे एक घायल पड़े युवक पर पड़ी | उन्होंने अपनी कार रोकी और उतर कर उसकी ओर बढे | उसका चेहरा और शरीर खून से सना हुआ था और उसने उनकी ओर अपना हाँथ बढ़ाया | उसकी ऑंखें जिंदगी बचाने के लिए याचना कर रही थीं लेकिन फिर उनके दिमाग में पुलिस , कोर्ट कचहरी इत्यादि घूमने लगे और वो वापस मुड़ गए | कार में बैठते समय एक बार फिर देखा तो उसके हाँथ उन्ही की ओर बढे हुए थे |
पर आज उन्होंने फैसला कर लिया , कि वो पत्नी को इस सपने की वज़ह बता देंगे , शायद उन्हें मुक्ति मिल जाए |

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 613

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on January 24, 2015 at 8:38pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय राहुल डांगी जी..

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 7:16pm
सुन्दर रचना बधाई हो
Comment by विनय कुमार on January 23, 2015 at 1:43am

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी , आप की टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है | 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 22, 2015 at 11:38pm
जिंदगी के उतार , जिंदगी के चढ़ाव की भूलों , गलतियों को बहुत सालते हैं, सच है। हमारे यहां ऐसी असंख्य कहानियां हर सड़क पर घटित मिल जाएंगी। पर इसके लिए कहानी के नायक कितने दोषी हैं , यह भी विचारणीय है. पत्नी को सपने की वजह बता कर वे मुक्त हो जायेंगें , पर समस्या ज्यों - की - त्यों वहीँ रहेगी।
इसके लिए वास्तव में व्यवस्था दोषी है और उसमें परिवर्तन की जरूरत है, जिसका घोर अभाव है, सब जगह , व्यवस्था में भी , और विचार में भी।
कहानी इस ओर सोचने को विवश करती है , इसलिए बधाई आदरणीय विनय कुमार जी, सादर।
Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 11:05pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 10:27pm

कहानी अच्छी लगी आदरणीय विनय कुमार जी, बहुत बहुत बधाई.

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:08pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी..

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:08pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , शायद थोड़ा और बेहतर हो सकती थी |

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:07pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी..

Comment by विनय कुमार on January 22, 2015 at 10:06pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service