For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल----उमेश कटारा

1222   1222   1222   1222

डसेगी मुझको तनहाई ,कटेगा ये सफ़र कैसे
तेरा घर है मेरे दिल में, जलाऊँगा वो घर कैसे

किसी को भूल जाना भी नहीं होता क़भी आसां
तू कहता है भुलादूँ मैं ,बता तू ही मगर कैसै

मेरी इन सुर्ख आँखों में लहू ये क्यों उतर आया
मुहब्बत में लगा दिख़ने बगाव़त का असर कैसे

चला है बेव़फा होकर बसाने घर रक़ीबों का
किसी दिन लौट भी आया ,मिलायेगा नज़र कैसे

बहाता हूँ दो आँसू मैं,मेरी तनहाई के संग संग
मज़ा-ए- इश्क़ में देखो किया मैंने बसर कैसे

-----------उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
 

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on January 16, 2015 at 3:46pm

वाह , बहुत खूब

किसी को भूल जाना भी नहीं होता क़भी आसां
तू कहता है भुलादूँ मैं ,बता तू ही मगर कैसै


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2015 at 7:13pm

आदरणीय उमेश भाई , आ. बागी जी भी वही कह रहे हैं जो मै कह रहा हूँ , संग सही शब्द है  जिसकी मात्रा  21 है , उसे सँग लिख के  (2 मात्रा)  मान लेना उचित नही है , ये मेरा ख़याल है , अतः मेरे हिसाब से संग 21 मानकर मिसरे मे सुधार कर लेना सही होगा , या संग शब्द को हटा कर कुछ और कहना । जैसे -- लिपट तनहाइयों से मैं बहाता हूँ सदा आँसू  ( अगर सही लगे तो ? )

Comment by umesh katara on January 8, 2015 at 6:39pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी मैंने सँग सँग ही लिखा था पर आदरणीयEr. Ganesh Jee "Bagi" ने संग संग लिखने को कहा तो मैंने संग संग किया है
मैं तो आप दोनों ही को अपना गुरु मानता हूँ कृपया आप दोनों उचित मार्गदर्शन करें
और बतायें में क्या करूँ
सँग सँग जो मैंने पूर्व में लिखा था 
Er. Ganesh Jee "Bagi"के कहे अनुसार

Comment by somesh kumar on January 8, 2015 at 4:51pm

डसेगी मुझको तनहाई ,कटेगा ये सफ़र कैसे
तेरा घर है मेरे दिल में, जलाऊँगा वो घर कैसे

पहला ही शे'र दिल को तरंगित कर गया ,गज़ल भी अर्थपूर्ण हैं ,बाकी सुधार तो गुणीजन ने बता ही दिए हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2015 at 1:25pm

आदरणीय उमेश भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , वाह !

मेरी इन सुर्ख आँखों में लहू ये क्यों उतर आया
मुहब्बत में लगा दिख़ने बगाव़त का असर कैसे

चला है बेव़फा होकर बसाने घर रक़ीबों का
किसी दिन लौट भी आया ,मिलायेगा नज़र कैसे  - बहुत सुन्दर आदरणीय , हार्दिक बधाइयाँ ।

बहाता हूँ दो आँसू मैं,मेरी तनहाई के संग संग   - अंतिम शे र का ये मिसरा बे बहर है

संग का क़ज़न आपको 21 लेना चाहिये , जैसे रंग का लिया जाता है , वर्तनी मे अगर चंद्र बिंन्दु हो . जैसे-  सँवर  तो मात्रा 12 लिया  जाता है , ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 7, 2015 at 7:27pm

वाह भाई ग़ज़ल अच्छी लगी बधाई

Comment by Hari Prakash Dubey on January 7, 2015 at 5:37pm

बहाता हूँ दो आँसू मैं,मेरी तनहाई के सँग सँग
मज़ा-ए- इश्क़ में देखो किया मैंने बसर कैसे........आदरणीय  उमेश कटारा जी बहुत खूब, शानदार ! हार्दिक बधाई आपको !

Comment by Anurag Prateek on January 7, 2015 at 3:36pm

मेरी इन सुर्ख आँखों में लहू ये क्यों उतर आया

मुहब्बत में लगा दिख़ने व़गाबत का असर कैसे -- achha laga


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 7, 2015 at 1:28pm

//किसी को भूल जाना भी नहीं होता क़भी आसाँ आसां
तू कहता है भुलादूँ मैं, बता तू ही मगर कैसै

मेरी इन सुर्ख आँखों में लहू ये क्यों उतर आया
मुहब्बत में लगा दिख़ने व़गाबत बगावत का असर कैसे

बहाता हूँ दो आँसू मैं,मेरी तनहाई के सँग सँग संग संग
मज़ा-ए- इश्क़ में देखो किया मैंने बसर कैसे//
अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बधाई कटारा साहब.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service