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सूरजमुखी के पास जा / ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

   2212   -    2212

हो  वार  अब  के  दूसरा

बेजार दिल दामन बचा

मेरे  मुकाबिल  तू  खड़ा

कितना मगर तू लापता 

लेकिन  बता  मैं  हूँ कहाँ

चारो  तरफ  मैं  चल रहा

 

ये लब  लरजते   कांपते

इनको मिली अबके सदा

 

जब  जब  यहाँ  दंगें  हुए

तब  तब  हुई कड़वी हवा

 

सूरजमुखी  से  बात कर

सूरजमुखी  के  पास  जा

 

प्यासा  समंदर  मौज से

अक्सर  कहे  जा रेत ला

 

इस  झील  की परवाज़ है

आगोश  में   अर्ज़ो-समा

 

दिल का दिया 'मिथिलेश' क्यूँ
मज़बूर सा जलता रहा

-------------------------------

 (मौलिक व अप्रकाशित)

 © मिथिलेश वामनकर 

-------------------------------

बह्र--ए-रजज़ मुरब्बा सालिम

अर्कान – मुस्तफ्यलुन / मुस्तफ्यलुन

वज़्न –   2212   / 2212  

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 5:23pm

 आदरणीय मिथिलेश जी सुन्दर  रचना पर बधाई आपको !

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