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ग़ज़ल ---------------------- गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२  २२ २२/१२१

रंगों की नादानी देखो

तेरी करें गुलामी देखो

चाँद धनुक गुलशन और हूर

तेरी रचें जवानी देखो

पहले आम की नई बौरें

यौवन से अनजानी देखो

जोग लगा दे जोग छुड़ा दे

सूरत एक सुहानी देखो

शेख बिरहमन करने लगे

रब से बेईमानी देखो

तुझको पूजूं या प्यार करू

ये अजब परेशानी देखो

तोड़ो चुप्पी गुमनाम ज़रा

कहके प्रेम कहानी देखो

गुमनाम पिथौरागढ़ी

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on December 18, 2014 at 5:57pm

धन्यवाद दोस्तो आपका साथ हमेशा अपेक्षित है ,,,,,,,,,,,,,,

Comment by mrs manjari pandey on December 17, 2014 at 9:35pm
आदरणीय बहुत कमनीय सुन्दर सी गजल । पढ़ का अच्छा लगा । बहुत बहुत बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 17, 2014 at 8:00pm

बहुत बढ़िया आदरणीय गुमनाम जी बेहतरीन ग़ज़ल है दिली दाद कुबूल करें। वैसे छठे शेर की रवानी और अच्छी हो सकती है, 

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 17, 2014 at 7:37pm

गोपाल नारायण जी सादर नमस्कार धन्यवाद आप लोगो के ही प्रोत्साहन से कुछ लिखने कहने की कोशिश कर पाता हूँ आप सराहते हैं तो हौसला मिलता है ........ जहाँ तक गुमनाम का सवाल है बड़े बड़े नामो के बीच कई गुमनाम ही रह जाते है एक और सही ........

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 17, 2014 at 8:54am

गुमनाम जी

ऐसी  खूबसूरत गजल कहने वाला गुमनाम कैसे हो सकता है ? सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 17, 2014 at 8:52am

गुमनाम जी

Comment by somesh kumar on December 16, 2014 at 10:53pm

शुरु से अंत तक ,हर लफ्ज़ दिल से जुड़ता हुआ महसूस हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 10:49pm

शेख बिरहमन करने लगे

रब से बेईमानी देखो ...उम्दा 

बेहतरीन रचना आदरणीय  gumnaam pithoragarhi जी हार्दिक बधाई आपको !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 16, 2014 at 10:38pm

शेख बिरहमन करने लगे

रब से बेईमानी देखो.....सुन्दर रचना आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी! हार्दिक बधाई !

Comment by vijay nikore on December 16, 2014 at 9:43pm

बहुत सुन्दर भाव हैं। बधाई।

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