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हम याद तुम्ही को करते थे

हम याद तुम्ही को करते थे,
छुप छुप के आहें भरते थे,
मदहोश हुआ जब देख लिया
सपनों में अब तक मरते थे.

रूमानी चेहरा, सुर्ख अधर,
शरमाई आँखे, झुकी नजर,
पल भर में हुए सचेत मगर,
संकोच सदा हम करते थे.

कलियाँ खिलकर अब फूल हुई,
अब कहो कि मुझसे भूल हुई,
कंटिया चुभकर अब शूल हुई,
हम इसी लिए तो डरते थे.

अब होंगे हम ना कभी जुदा,
बंधन बाँधा है स्वयं खुदा,
हम रहें प्रफुल्लित युग्म सदा,
नित आश इसी की करते थे.

(मौलिक व अप्रकाशित )
- जवाहर लाल सिंह

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 31, 2014 at 7:16pm

उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 11:19am

याद को बहुत शिद्दत से उभारा है आ० जवाहरलाल सिंह जी, बधाई स्वीकारें।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 5, 2014 at 7:07pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री विजय निकोर साहब!

Comment by vijay nikore on December 4, 2014 at 4:25pm

अति सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 3, 2014 at 7:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री भंडारी साहब!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2014 at 4:05pm

बहुत  सुन्दर  प्रेम गीत की रचना की है आदरणीय जवाहर भाई , हार्दिक बधाई ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 3, 2014 at 12:49pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्री नीरज कुमार नीर जी!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 3, 2014 at 12:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्री राम शिरोमणि पाठक जी!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 3, 2014 at 12:47pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्री हरी प्रकाश दुबे जी 

Comment by Neeraj Neer on December 2, 2014 at 5:58pm

सुंदर प्रस्तुति ॥ 

कृपया ध्यान दे...

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