For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बंद खिडकियों से

झांकता

प्रकाश

चारो ओर स्याह-स्याह

मुट्ठी भर

उजास

 

टूटी हुयी

गर्दन लिए

बल्ब रहे झाँक

ट्यूब लाईट

अपना महत्त्व

रहे आंक

 

सर्र से

गुजर जाते

चौपहिया वाहन

सन्नाटा

विस्तार में

करता अवगाहन

 

तारकोली

सड़क सूनी

रिक्त चौराहे

सर्पीली राहें

मानो  

मौत की बाहें 

 

फ़िल्मी गीत

कोई लोफर

गाता

गली से निकलता

मुख, आँख, नाक

से धुआं

उगलता

 

हवा

उदास प्रेमी सी

ठंढी बेचैन

अँधेरा मूक

न तो नैन

ना ही बैन

 

टेम्पो

अहरह खींचते

सन्नाटे के कान  

श्मसान

बना हुआ

फ़ैला सुनसान

 

बाहर से

है शांत कितनी

शहर की

ये रात

ऊंची भव्य

इमारतो में

जागती है रात

 

पवन बधिर

सुनता है

दूर कही चीख

कोई

कही मांगता है

जान की भीख 

 

नदी

के पुल पर

रुकती एक कार

खुलता है द्वार

चंद हाथो में

एक बोरा सवार

रेलिंग तक

जाता

होता छपाक ---

रजनी अवाक !

 

घर से

या किसी

नर्सिंग होम से

निकले नाजायज बाप

मरघट के डोम से

चोरी से

किसी मोटर

साईकिल के पीछे

हाथो में

समेटे कुछ

झाड़ियों के नीचे  

डाल

हाथ खींचे

 

दूर कहीं

मर रही

नवजात आवाज

ठंढ में ऐंठा शिशु

मृत्यु का
सजे साज

हो

गयी कोई माता

शायद कुमाता

अहह विधाता !

 

लुट रहा

अंधेरो में

कहीं 

उजला सतीत्व

ऊंची शान

ऊंची

मर्यादा का प्रतीत्व

 

इसी समय

कही होते

स्याह व्यापार

कलुष तिजोरियां

तस्करी

सरकारी सुरक्षा

काला बाजार 

 

एक मानो

नया जग 

सहसा क्रियमाण

बंद कई

कमरे

कई सांसे, उच्छ्वास

कुटिल

सत्य के प्रमाण

 

हाहाकार

मौन

थका हुआ

वात

हलचल के बीच

शांत

शहर की

ये रात  

शहर की ये रात !

(मौलिक/अप्रकाशित )

Views: 634

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 19, 2014 at 11:11am

आ० सौरभ जी

आपका  शत शत आभार i सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 16, 2014 at 11:33pm

शहर की रात विस्मयी ही नहीं रहस्यमयी भी हुआ करती है. इस विन्दु को आपने साझा कर प्रामाणिकता की मुहर लगा दी है, आदरणीय गोपाल नारायनजी..
सादर बधाइयाँ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2014 at 11:04am

दादा श्री

आपका बहुत बहुत आभार i आपका स्नेह यूँ ही मिलता रहे i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 4, 2014 at 1:54am
आदरणीय, बहुत सजीव चित्रण और बहुत प्रभावशाली संप्रेषण हुआ है आपकी भावनाओं का इस चमकप्रद रचना में....काश हम सभी के पास कान होते शहर की रात के इस गुपचुप शोर को सुनने के लिए....सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 25, 2014 at 3:39pm

राम शिरोमणि जी आपका आभार i  सादर  i

Comment by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:22pm
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय
Comment by vijay nikore on November 24, 2014 at 9:15am

पढ़ता गया, और शहर का नज़ारा खुलता-सा गया।

बहुत ही सशक्त रचना के लिए बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 24, 2014 at 6:35am
आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण जी , शहर के स्याह सन्नाटे और उसके साये में पनपते काले कारनामों को उजागर करते हुए एक बहुत सफल रचना है. महानगरों की शोरगुल भरी जिंदगी में तो और भी बहुत से धोखे हैं , हर पल हर जगह धोखे ही धोखे हैं।
फिर भी जीता है आदमी ,
चौकन्ना है आदमी , पर हर पल ,
दायें बाएं ठगा जाता है आदमी ,
कोई जिंदगी नहीं है महानगरों में ,
कैद में है आम आदमी , और
भाग भी नहीं पाता है आदमी ,
ऊपर से खुश दिखनेवाला ,
सच में बहुत दुखी है आदमी।

सादर , बहुत बहुत बधाई इस कीमती रचना के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service