For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभी हांथों की मेहँदी भी नहीं सूखी थी और ये हादसा |
" भगवान को यही मंजूर था " , लोग दिलासा दे रहे थे |
" लेकिन जिस भगवान को ये मंजूर था वो भगवान हमें मंजूर नहीं ", और उसके मन के भाव दृढ हो गए |

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 422

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on October 16, 2014 at 12:14pm

बहुत बहुत आभार डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी..

Comment by विनय कुमार on October 16, 2014 at 12:13pm

बहुत बहुत आभार गणेश जी बागी जी | जी आपका कहना सही है , उस पंक्ति के बिना भी सन्देश स्पष्ट है | 

Comment by विनय कुमार on October 16, 2014 at 12:11pm

बहुत बहुत आभार शिज्जु शकूर जी..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 15, 2014 at 6:20pm

मार्मिक i आस्था-अनास्था का द्वन्द i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 15, 2014 at 12:57pm

//और उसके मन के भाव दृढ हो गए //

 

इस पक्ति को लिखने की आवश्यकता नहीं थी।
//" लेकिन जिस भगवान को ये मंजूर था वो भगवान हमें मंजूर नहीं "// यह पक्ति भाव व्यक्त करने में सक्षम है,

बहुत ही प्रभावी लघुकथा हुई है,बहुत बहुत बधाई आदरणीय विनय जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 15, 2014 at 8:31am

मार्मिक कथा है आदरणीय विनय जी आखिर में एक अच्छा संदेश भी दिया है बधाई आपको

Comment by विनय कुमार on October 14, 2014 at 11:45pm

बहुत बहुत आभार जीतेन्द्र जी ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2014 at 11:20pm

दिलासा और झूठी सहानुभूतियों के सहारे कुछ नही मिलता,  दृडता से लिये गये  फैसले पर  ही जीवन जिया जाता है. बहुत सुंदर लघुकथा आदरणीय विनय जी. आपको हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service