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लघुकथा : बंद गली (गणेश जी बागी)

                  नंद वन अपने नाम के अनुसार ही आनंद पूर्ण वातावरण के लिए जाना जाता था, सभी जानवर शांति और भाईचारा से जीवन व्यतीत करते थे किन्तु अब यहाँ सब कुछ बदल गया था, कालू भेड़िया और दुर्जन भैस राजा की छत्र - छाया में आनंद वन में अत्याचार कर रहे थे, यहाँ तक की दिनदहाड़े ही बहु बेटियों को अपने अड्डे पर उठा ले जाते थे और विरोध करने वालों को जान से मार देते थे ।
                 भोलू हिरन की पत्नी को भी कालू और दुर्जन ने अपने गुंडों के साथ आकर सबके सामने उठा ले गए, भोलुआ कुछ न कर सका । शिकायत लेकर भोलुआ संतरी से लेकर मंत्री तक गया किन्तु कई दिन बीतने के बाद भी कोई सुनवाई न हो सकी ।
                "आनंद टाइम्स" में आज की हेड लाइन थी, "कालू और दुर्जन की हत्या, भोलुआ नक्सलियों में शामिल" 

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : बदलाव

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Comment

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Comment by savitamishra on September 24, 2014 at 11:40am

बहुत खुबसुरत .....सीधे साधे लोग ही अक्सर अपराध की राह चल पड़ते है

बहुत बहुत आभार सक्रीय सदस्य के रूप में हमे सम्मान देने के लिए ...हम समय पर देख नहीं पाए क्योकि हमारा कम्प्यूटर खराब था| और हम पासवर्ड भी भूल गये थे इसका कल ही नया पासवर्ड किये तो आज नजर गयी|...आभार पुनः

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 22, 2014 at 4:27pm

आदरणीय गणेश भाईजी , 

आपका यह बड़प्पन  है कि मेरे कहन को अन्यथा नहीं लिया , धन्यवाद आभार । दूसरे दिन  सुबह ही मुझे रायपुर जाना था  15 - 16 घंटे के लिए, अतः रात्रि में  ही आपकी कथा पढ़ते ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर गया, शायद  कुछ ज़ल्दी में।

सहीं कह रहे है बंद गली से  ही  भोलुआ को नई राह मिली है ।

सादर     

 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 22, 2014 at 11:31am

यह तो गागर में सागर भर दिया आपने. समसामयिक समस्या पर इससे अच्छा प्रहार दूसरा हो ही नहीं सकता.बहुत बधाई आ ० गणेश बागी जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2014 at 8:26pm

जब जब विश्वास या आसरा टूटता है , प्रतिक्रिया स्वरुप इंसान  दूसरे छोर की ओर न्याय के लिए क़दम बड़ा देता है, ये फैसला चाहे कितना भी गलत  हो,  यही प्रतिक्रया स्वाभाविक होती है | कथा के पात्र ने भी यही किया , बहुत खूब आदरणीय संकेतों में कही गयी कथा बहुत सफ़ल है | आपको दिली बधाइयाँ आ. बागी जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2014 at 7:08pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी प्रेरणा श्रोत है, बहुत बहुत आभार। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2014 at 7:05pm

प्रिय नीरज जी, लघुकथा पसंद करने हेतु धन्यवाद। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2014 at 7:04pm

आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है, समीक्षात्मक शैली में लिखी गई टिप्पणी मन मुग्ध कर गयी, सुझाव के अनुसार "ने" हटा दिया है किन्तु जहाँ तक शीर्षक की बात है, मेरा अनुरोध है कि "बंद गली" में तनिक अंदर तक प्रवेश करे, आपको यह शीर्षक अधिक अपयुक्त लगेगा। हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीय।  

Comment by Satyanarayan Singh on September 21, 2014 at 3:42pm

लघु कथा का शीर्षक बंद गली कथा के कथानक के अनुरूप है. नक्सलवाद का जन्म क्यों और किन परिस्थितियों में हुआ है  समस्या को समझे बिना निदान संभव नहीं. इस तथ्य को समझाने में लघु कथा सफल एवं प्रभावशाली रही है. ऐसा मेरा मानना है. अतएव आदरणीय सादर बधाई स्वीकार करें. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 21, 2014 at 1:10pm

बहुत बढ़िया लघुकथा. सच ही तो है जब सारे रास्ते बंद हो तो कोई करे भी क्या..? लघुकथा पर आपको बहुत -२ बधाई आदरणीय बागी जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 21, 2014 at 12:05pm

भोलू हिरन की पत्नी को जब गुंडे उठाकर ले गए और भोलू कुछ न कर सका और न ही उसकी किसी ने सुनवाई की तो अत्याचारों की मार से परेशाँ होकर कैसी नक्सली पैदा होते है, यह बताने में लघु कथा सफल हुई है | हार्दिक बधाई आ0 श्री गणेशजी "बागी" जी  

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