सोचता रहता हूँ
उदासियो में घिरकर
प्रतिक्षण-प्रतिपल
आबाद होंगे कब जीवन -मरुस्थल ?
काल की क्रूरता ने
मेरे प्रयासों को
आशा-उजासो को
जीवन-विकल्पों को
कर डाला धूमिल
कर्म हुआ निष्काम
कार्य भी निष्फल
आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?
सूने शून्य जीवन में
नियति के बंधन से
करुणा से क्रंदन से
पूरे जो न हो पायें
स्वप्न हुए चंचल
पंगु प्रेरणा के पग
शान्त और निश्चल
आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?
प्रातः की बेला ने
मुस्क्याते फूलो से
सरिता के कूलों से
सन्देश भेजा यूँ
लहराकर कलकल
रुकना ही मरना है
चलता जा अविरल
आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आशुतोष जी
आपका आभारी हूँ i
आदरणीय गोपाल सर ...बहुत ही सार्थक सन्देश देती चिंतन से ओतप्रोत शानदार रचना हेतु ढेरों बधाई सादर
आदरणीय विजय जी
आपका सतत आभारी हूँ i
प्रिय मित्र
आपक स्नेह सर आँखों पर i सादर i
महनीया
आपका प्रोत्साहन मिला i सादर i
पवन कुमार जी
आपका आभार i
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , लाजवाब गीत रचना की है , हल देती हुई अंतिम पंक्तियों के लिए विशेष बधाइयाँ |
प्रातः की बेला ने
मुस्क्याते फूलो से
सरिता के कूलों से
सन्देश भेजा यूँ
लहराकर कलकल
रुकना ही मरना है
चलता जा अविरल
आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल ! खूब , बहुत सुन्दर |
बहुत सुन्दर अप्रतिम प्रस्तुति ...ढेरों बधाईयाँ सादर
बहुत सुन्दर ....
सादर बधाई
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