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कि तेरी याद आती है

चले आओ कभी आगोश में,
सब छोड़ के जालिम!
ये रातें कट रही तन्हा,
कि तेरी याद आती है।

बताऊँ फिर तुझे कैसे,
दिल-ए-नादाँ की बातें!
मैं खुद में हो गया आधा,
कि तेरी याद आती है।

कभी रहती थी पलकों पे,
हुस्न-ए-नूर बनकर तुम!
वही बनके तूँ फिर आजा,
कि तेरी याद आती है।

समय बदला, फिजा बदली,
अभी ये दिल नही बदला!
समय के साथ तूँ बदली,
कि तेरी याद आती है।

सोचता हूँ समेटूँगा,
तेरी यादों के लम्हों को!
मगर फुर्सत नही मिलती,
कि तेरी याद आती है।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by Pawan Kumar on August 23, 2014 at 12:39pm

""आदरणीय जितेन्द्र जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! ""

Comment by Pawan Kumar on August 23, 2014 at 12:36pm

"आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम ..

कोशिश रहेगी कि ये मिठास कभी कम ना हो। 

उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन  के लिए ह्रदय से आभार|

Comment by Pawan Kumar on August 23, 2014 at 12:19pm

"आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  जी सादर प्रणाम ...

आशीर्वाद दिजिये कि भविष्य में बहुत सी सुन्दर रचनायें कर सकूं....

उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Pawan Kumar on August 23, 2014 at 12:15pm

""आदरणीय laxman dhami  जी, उत्साह वर्धन व प्रशंसा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।""

भविष्य में प्रयासरत रहेंगे कि और भी सुन्दर रचनायें हों। 

Comment by Pawan Kumar on August 23, 2014 at 12:13pm

 आदरणीय श्याम नरायन वर्मा जी, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! ""

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 23, 2014 at 12:17am

बेहद सुंदर रचना आदरणीय पवन जी. दिल को छू जाते भाव. बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 10:23pm

भावाभिव्यक्ति में मिठास है. प्रस्तुति के लिए बधाई, पवनजी

प्रयासरत रहें.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2014 at 9:35pm

पवन जी
अंतिम बंद ने मन को छु लिया , सुन्दर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 22, 2014 at 11:33am

कभी रहती थी पलकों पे,
हुस्न-ए-नूर बनकर तुम!
वही बनके तूँ फिर आजा,
कि तेरी याद आती है।

आदरणीय पवन कुमार जी सुंदर रचना हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by Shyam Narain Verma on August 22, 2014 at 10:58am
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. "

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