For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिय मोहन तेरे द्वार खड़ी मैं,
कबसे से रही पुकार!
कान्हा मुझको शरण में ले लो,
विनती बारम्बार।

मैं तो अज्ञानी, अभिलाशी,
तेरे दरश की प्यारे!
जीवन पार लगा दो मेरा,
बस मन यही पुकारे।

खुशियों से भर दो ये झोली,
ओ मेरे साँवरिया!
तेरे पीछे दौड़ी आऊँ,
बन के मैं बाँवरिया।

मोह रहे हैं मन को मेरे,
श्याम तेरे ये नयना!
दिन में सुकून ना पाऊँ तुम बिन,
रात मिले ना चैना।

मुझ अबला को सबला कर दो,
जग के तारनहार!
कान्हा मुझको शरण में ले लो,
विनती बारम्बार।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 520

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pawan Kumar on August 22, 2014 at 5:34pm

आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम .....
आपका आशीर्वाद मिला मन प्रसन्न हुआ
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।
हमारी यही कामना रहेगी कि आपका आर्शीवाद और मार्गदर्शन इसी तरह मिलता रहे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 1:32pm

आपकी किसी रचना से गुजरना अच्छा लगा, भाई पवनजी.

आप इस मंच की अन्यान्य रचनाओं को पढ़ें और उनपर अपने विचारों को शाब्दिक करें. ऐसा करना आपके रचनाकर्म को सबल करेगा.

प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ.

Comment by Pawan Kumar on August 21, 2014 at 3:25pm

"आदरणीया सवीता मिश्रा जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! "

Comment by Pawan Kumar on August 21, 2014 at 2:52pm

"आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! "

Comment by Pawan Kumar on August 21, 2014 at 2:52pm

"आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी, उत्साह वर्धन व प्रशंसा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।"

Comment by savitamishra on August 20, 2014 at 7:44pm

खुबसुरत

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 20, 2014 at 2:27pm

पवन जी

सुन्दर, सद्प्रयास i

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 19, 2014 at 9:20pm

मुझ अबला को सबला कर दो,
जग के तारनहार!
कान्हा मुझको शरण में ले लो,
विनती बारम्बार।

उपयुक्त प्रार्थना!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service