प्रिय मोहन तेरे द्वार खड़ी मैं,
कबसे से रही पुकार!
कान्हा मुझको शरण में ले लो,
विनती बारम्बार।
मैं तो अज्ञानी, अभिलाशी,
तेरे दरश की प्यारे!
जीवन पार लगा दो मेरा,
बस मन यही पुकारे।
खुशियों से भर दो ये झोली,
ओ मेरे साँवरिया!
तेरे पीछे दौड़ी आऊँ,
बन के मैं बाँवरिया।
मोह रहे हैं मन को मेरे,
श्याम तेरे ये नयना!
दिन में सुकून ना पाऊँ तुम बिन,
रात मिले ना चैना।
मुझ अबला को सबला कर दो,
जग के तारनहार!
कान्हा मुझको शरण में ले लो,
विनती बारम्बार।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम .....
आपका आशीर्वाद मिला मन प्रसन्न हुआ
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।
हमारी यही कामना रहेगी कि आपका आर्शीवाद और मार्गदर्शन इसी तरह मिलता रहे।
आपकी किसी रचना से गुजरना अच्छा लगा, भाई पवनजी.
आप इस मंच की अन्यान्य रचनाओं को पढ़ें और उनपर अपने विचारों को शाब्दिक करें. ऐसा करना आपके रचनाकर्म को सबल करेगा.
प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ.
"आदरणीया सवीता मिश्रा जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! "
"आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! "
"आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी, उत्साह वर्धन व प्रशंसा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।"
खुबसुरत
पवन जी
सुन्दर, सद्प्रयास i
मुझ अबला को सबला कर दो,
जग के तारनहार!
कान्हा मुझको शरण में ले लो,
विनती बारम्बार।
उपयुक्त प्रार्थना!
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