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कविता गीत ग़ज़ल रूबाई।

सबने माँ की महिमा गाई।।

जल सा है माँ का मन निर्मल

जलसा है माँ से घर हर पल

हर रँग में रँग जाती है माँ

जल से बन जाता ज्‍यों शतदल

माँ गंगाजल, माँ तुलसीदल

माँ गुलाबजल, माँ है संदल

जल-थल-नभ, क्‍या गहरी खाई।

माँ की कभी नहीं हद पाई।

कविता गीत----------------

माँ फूलों की बगिया जैसी

रंगों में केसरिया जैसी

माँ भोजन में दलिया जैसी

माँ गीतों में रसिया जैसी

माँ वीरा, माँ धी, माँ बहना

माँ अनमोल जड़ी, माँ गहना।

रूप स्‍वरूप धरे जब-जब भी

दूध दही मक्‍खन सी पाई।

कविता गीत-------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 3, 2014 at 9:01am

प्रणाम। सभी का बहुत बहुत आभार। 

Comment by shashi purwar on August 24, 2014 at 6:45pm

बहुत   सुन्दर भाव  माँ के लिए हर शब्द भाव कम पड़ता है , बहुत सुन्दर रचना है हार्दिक बधाई

Comment by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:52pm

बहुत सुन्दर ..माँ के लिए लिखी गई रचना हेतु सादर बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 23, 2014 at 12:13am

माँ की शान में  कही गई रचना पर आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय डा. गोपाल जी.

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 22, 2014 at 9:16pm

सभी पाठकगणों व विद्वान् साथियों को आभार। अभिव्‍यक्ति के लिए सुंदर मंच मिला है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 22, 2014 at 8:28pm

माँ की शान में लिखी रचना हृदय को छूती है बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई आपको आ० डॉ.गोपाल कृष्ण जी| 

Comment by Pawan Kumar on August 22, 2014 at 4:24pm

प्रणाम सर, 
माँ की ममता को शब्दो में वर्णित करना अतना आसान नही है लेकिन आपने माँ के व्यक्तित्व को इतने सुन्दर शब्दो में पिरोया है ....बहुत ही सुन्दर ....सत् सत् नमन् .... सादर बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 22, 2014 at 11:19am

माँ भोजन में दलिया जैसी

माँ गीतों में रसिया जैसी

माँ वीरा, माँ धी, माँ बहना

माँ अनमोल जड़ी, माँ गहना।

आदरणीय भाई  गोपाल किशन जी इन खूबसरत पक्तियों के लिए कोटि कोटि बधाई ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 21, 2014 at 8:21pm

प्रथम अनुच्छेद में 'जल' शब्द का सुन्दर प्रयोग आकर्षित करता है,  दूसरा अनुच्छेद भी ह्रदय ग्राही है ...वैसे माँ के जितने भी गुण गए जाएँ कम है ...पर दुर्भाग्य है माँ बननेवाली बालिका, महिला का सम्मान दिनोदिन कम होता जा रहा है ..सादर बधाई सुन्दर प्रस्तुति के लिए...श्री गोपाल कृष्ण जी ...

Comment by Shyam Narain Verma on August 21, 2014 at 3:57pm
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. "

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