For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ये क्या मम्मी , फिर आपने इस ठेले वाले से सब्ज़ी खरीद ली । कितनी बार कहा है की सामने वाले शॉपिंग माल से ले लिया करो । सब्ज़ियाँ ताज़ी भी मिलती हैं और अच्छी भी । क्या मिलता है आपको इसके पास"।

"बेटा , इसकी सब्ज़ी में अपनापन है और उसमे जो स्वाद मिलता है न वो और कहीं नहीं मिलता"।

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 578

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 25, 2014 at 10:48am

आभार सुभ्रांशुजी ..

Comment by Shubhranshu Pandey on July 25, 2014 at 9:12am

आदरणीय विनय जी, 

आज के इस व्यावसायिक दौर में जहां सामान के साथ साथ सम्बन्ध भी युज एण्ड थ्रो हो गये हैं वहां इस तरह की बातें खत्म होती जा रही है...सुन्दर कथा

सादर.

Comment by विनय कुमार on July 24, 2014 at 8:54pm

आभार गिरिराज भण्डारीजी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 24, 2014 at 3:04pm

नये बच्चे ये बात नही समख पाते , समझाना भी ज़रूरी है । सुन्दर लघुकथा , आपको बधाइयाँ ॥

Comment by विनय कुमार on July 24, 2014 at 1:58pm

आभार जितेंद्रजी , सौरभजी एंड राजेश कुमारीजी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 24, 2014 at 10:24am

जिस चीज में अपना पन  होता है वो हमे भावनात्मक रूप से भी बांधे रहता है और इसे वही समझ सकता है जो इससे जुड़ा हो,स्वाद कथा का मर्म बहुत दिल के करीब लगा ,लघु कथा  अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब है बहुत- बहुत बधाई| 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2014 at 12:01am

सामाजिक व्यवहार को आग्रही बाज़ारवाद जिस तह से निशाना बनाता हुआ निगलता जा रहा है उसकी ज़द में ये सब्ज़ीवाले टाइप के छोटे व्यापारी अनायास आ गये हैं. आजकी एक भावनात्मक ही नहीं प्रमुख सामाजिक समस्या को इस लघुकथा के माध्यम से शब्द मिले हैं.

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 23, 2014 at 11:54pm

बहुत सुंदर कथा, बस!..यह अपनेपन वाला  स्वाद  बहुत कम ही समझते है. बधाई आदरणीय विनय जी

Comment by विनय कुमार on July 23, 2014 at 7:06pm

आभार डॉ विजय शंकरजी , डॉ गोपाल नारायणजी एवम संतलाल जी ..

Comment by Santlal Karun on July 23, 2014 at 4:15pm

आदरणीय विनय कुमार सिंह जी,

अपनत्व को रूपायित करती लघु कथा, संदेशपरक, साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service