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ग़ज़ल - कोयला दहके तो अच्छा है ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122     2

अब हवा है , कोयला दहके तो अच्छा है        

देख ले ये बात भी कहके तो अच्छा है

 

खूब झेला पतझड़ों को, अब कोई कोना

इस चमन का भी ज़रा महके तो अच्छा है

 

सीलती सी, उस अँधेरी झोपड़ी में भी ,

देखते हैं आप जो रहके , तो अच्छा है

 

कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का

दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है

 

ज़िन्दगी बेस्वाद लगती है लकीरों में

अब क़दम थोड़ा अगर, बहके तो अच्छा है

 

इन सजावट के सभी हर्फों को झूठा मान  

झाँक नीचे, ऊपरी तह के तो अच्छा है  

*************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित  ( संशोधित )

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2014 at 8:18pm

आदरनीय जवाहर लाल भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 19, 2014 at 6:22pm

खूबसूरत ग़ज़ल हुई है गिरिराज जी। पहले तीन शे’र जबरदस्त हैं। दिली दाद कुबूल करें।

ज़िन्दगी बेस्वाद लगती है लकीरों में

अब क़दम थोड़ा उधर, बहके तो अच्छा है ..... उधर से यह स्पष्ट नहीं है कि किधर? शे’र की शेरियत कम हो रही है।

 

इस सजावट के सभी हर्फों को झूठा मान  

झाँक नीचे, ऊपरी तह के तो अच्छा है ..................‘इस सजावट’ से स्पष्ट नहीं है कि किस सजावट की बात हो रही है। यहाँ भी शे’र की शेरियत कम हो रही है।

ग़ज़ल फिर भी शानदार है। बधाई स्वीकार करें।

Comment by Sarita Bhatia on May 19, 2014 at 6:22pm

वाह आदरणीय दिली दाद  कुबूल करें 

Comment by Madan Mohan saxena on May 19, 2014 at 4:56pm

कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का
दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है

बहुत खूब,सुन्दर

Comment by Meena Pathak on May 19, 2014 at 8:35am

क्या बात है सर ... बेहद उम्दा , आप के हर रचना की तरह .. सादर बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 18, 2014 at 8:38pm

कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का

दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है

बहुत ही सुन्दर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 18, 2014 at 12:26pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , आपको गज़ल पसंद आई , बड़ी खुशी हुई । सराहना के लिये आपका आभार ।

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 18, 2014 at 12:19pm

कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का

दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है

 

ज़िन्दगी बेस्वाद लगती है लकीरों में

अब क़दम थोड़ा उधर, बहके तो अच्छा है

सुन्दर भाव युक्त गजल क्या कहने
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 17, 2014 at 5:02pm

आदरणीया महेश्वरी जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 17, 2014 at 5:00pm

आदरनीया बिन्दु जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुक्रिया !!

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