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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२ २२ २२

क्या तुमने ये सोचा पगली
गर मैं तेरा होता पगली

तेरी यादें फूलों जैसी
कांटे होते रोता पगली

इन आँखों के वादे पढ़कर
बन बैठा मैं झूठा पगली

मैं तो तेरा साया हूँ ,अब
तू है मेरी काया पगली

तेरी बातें तू ही जाने
मैं तो हूँ बस तेरा पगली

राहों पर यूँ नज़र बिछाना
गुमनाम करे दीवाना पगली


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by gumnaam pithoragarhi on May 16, 2014 at 5:23pm

धन्यवाद आप सभी का कोशिश करने की आदत नहीं छोड़ना चाहता। ,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by coontee mukerji on May 15, 2014 at 7:24pm

अच्छी गज़ल है.....गुमनाम ही . हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 15, 2014 at 5:14pm

भाई गुमनाम जी ग़ज़ल को लेके आप काफी संजीदा मालूम होते हैं अब शिल्प भी सधने लगा है इस गज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें

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