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ग़ज़ल - ' कहीं है आग जलती सी ' ( गिरिराज भंडारी )

1222     1222     1222      1222   

 

कहीं कुछ दर्द ठहरा सा , कहीं है आग जलती सी

कभी सांसे हुई भारी , कभी हसरत मचलती सी

कभी टूटे हुये ख़्वाबों को फिर से जोड़ता सा मै

कभी भूली हुई बातें मेरी यादों में चलती सी

कभी होता यक़ीं सा कुछ , कहीं कुछ बेयक़ीनी है

तुझे पाने की उम्मीदें कभी है हाथ मलती सी

कभी महफिल में तेरी रह के मै तनहा सा रहता हूँ

कभी तनहाइयों में संग पूरी भीड़ चलती सी

कभी बेबात ही ये ज़िंदगी वीरान लगती है

कभी बेजान साया देख के थोड़ी बहलती सी

कभी ये लड़खड़ाती है बहुत हमवार राहों मे

कभी ये ज़िन्दगी काटों में भी घिर के सँभलती सी

कभी ये शांत बहती है कोई गहरी नदी हो ज्यूँ

पहाड़ी सी नदी जैसी कभी बेहद उछलती सी  

*******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 1002

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 11:35am

आदरणीय गुमनाम भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 11:34am

आदरणीय कल्पना मिश्रा जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 11:33am

आदरणीय कल्पना जी , सराहना के लिये आपका आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 11:32am

आदरणीय बृजेश भाई , सराहना के लिये आपका आभार !!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 14, 2014 at 9:27am

आदरणीय भाई गिरिराज जी एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ,

लेकिन कुछ संसय अंतिम पंक्ति में लग रहा है , शायद मैं गलत होऊं , फिर भी आप देख लें

पहाड़ी सी नदी जैसी  के स्थान पर ' पहाड़ी नद सरीखी ज्यों ' हो तो कैसा रहेगा ,

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 13, 2014 at 1:07pm

वाह क्या खूबसूरत ग़ज़ल हुई है बेहद सुन्दर रवानी
सादर

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 12, 2014 at 12:05pm

 कहीं कुछ दर्द ठहरा सा , कहीं है आग जलती सी

कभी सांसे हुई भारी , कभी हसरत मचलती सी

कभी महफिल में तेरी रह के मै तनहा सा रहता हूँ

कभी तनहाइयों में संग पूरी भीड़ चलती सी

khoob sir ji badhai gazal achchhi lagi

Comment by kalpna mishra bajpai on April 11, 2014 at 10:04pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई। सादर   

Comment by कल्पना रामानी on April 11, 2014 at 7:52pm

बहुत सुंदर गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी

Comment by बृजेश नीरज on April 11, 2014 at 7:23pm

आह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने! आपको बहुत-बहुत बधाई!

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