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दिन बहुत देखे
रोज कोई खास दिन
कोई प्यार का दिन
कोई त्यौहार का दिन
कोई इजहार का दिन
हर दिन का एक मतलब है
छुट्टी का दिन जो सन डे है
बन गया वो अब फन डे है
काश कोई बेमतलब का दिन भी होता
जिसका कोई नाम न होता
करने को कोई काम न होता
मुश्किल किसी को आराम न होता
उस दिन की कोई परभाषा न होती
इक दूजे से कोई आशा न होती
किसी के मन में निराशा न होती
सब अपनी धुन में नाचते
अच्छा और बुरा न जांचते
जैसे चलती है हवा मग्न सी
जैसे निडर बहता है पानी
जैसे जलती अग्नि जोश में
आज़ादी जब राग छेडती
बन जाता कोई गीत रूहानी
काश कोई बेमतलब का दिन भी होता
काश कोई बेमतलब का दिन भी होता

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Comment

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Comment by Bhasker Agrawal on February 7, 2011 at 8:59pm

अरुण जी और बागी जी

उत्साहवर्दन के लिए धन्यवाद


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2011 at 7:46pm
काश कोई बेमतलब का दिन भी होता....... बहुत खूब भाष्कर जी, यह कामना भी रोमांचित कर देने वाली है | अच्छी रचना ...
Comment by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 3:21pm
bhaaskar jee aapkee kaamna achchhee hai . aapne kaavya roop me ese khoobsuratee se vyakt kiya hai .badhaaee |

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