For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तोड़ नीड़ की परिधि

सारी वर्जनाएं

भुला  नीति रीति

लांघ कर सीमाएं

छोड़ संयम की कतार

दे परवाज़ को विस्तार

वशीकरण में बंधा

लिए एक अनूठी चाह

कर बैठा गुनाह

लिया परीरू चांदनी का चुम्बन

जला बैठा अपने पर

उसकी शीतल पावक चिंगारी से

गिरा औंधें मुहँ

नीचे नागफनी ने डसा

खो दिया परित्राण

ना धरा का रहा

ना गगन का

बन बैठा त्रिशंकु

वो उन्मत्त परिंदा

**************

 (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 821

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 13, 2014 at 10:28am

आ० लक्ष्मण प्रसाद जी, आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ.  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2014 at 10:14am

बन बैठा त्रिशंकु

वो उन्मत्त परिंदा - वाह ! बहुत सुन्दर/अनुपम रचना के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 13, 2014 at 8:57am

आ० धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आपने रचना के मर्म को समझने की कोशिश की अच्छा लगा ,आपने जिस बात को इंगित किया शायद आपने ध्यान नहीं दिया की तोड़ नीड़ की परिधि के बाद अगला वाक्य ही इस बात की पुष्टि कर रहा है की परिंदा किस आशय से नीड़ की परिधि तोड़ रहा है पहले मान्यताएं लिख रही थी कितु वो सपाट हो जाती और आगे के वाक्यों में रिपीटेशन हो जाता ,अंतिम बात नागफनी ने डसा ,बेशक नागफनी जमान पर होती है किन्तु उसके काँटे शीर्ष पर भी होते हैं जहाँ परिंदा फंस सकता है ,खैर ये तो परिंदे की बात हुई ,कितु परिंदे का बिम्ब लेकर इशारा किस और है हर कवी ह्रदय पहचान/समझ ही लेगा त्रिशंकु अर्थात घर का न घाट का  .....यही भाव हैं दुबारा पढेंगे तो शायद रचना और स्पष्ट होगी.  

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 12, 2014 at 9:21pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

कविता अच्छी हो सकती थी मगर कुछ तथ्यगत त्रुटियाँ हैं जैसे

(यहाँ मैं ये मानकर चल रहा हूँ कि ये त्रुटियाँ जानबूझकर कविता को विशेष अर्थ देने के लिए नहीं की गई हैं)

तोड़ नीड़ की परिधि - नीड़ की परिधि तो ज़िंदा रहने के लिए ही तोड़नी पड़ जाती है, परिंदा चुगने नहीं जाएगा तो ज़िंदा कैसे रहेगा

सुझाव - वायुमंडल की परिधि कर सकती हैं

नागफनी जमीन पर होती है मतलब परिंदा जमीन पर गिर गया -  तो त्रिशंकु कैसे हुआ?

ये तो आपको ही ठीक करना होगा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2014 at 8:43pm

नीरज कुमार नीर जी रचना आपको पसंद आई मेरा लेखन कर्म सफल हुआ हार्दिक आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2014 at 8:41pm

आदरणीय गिरिराज जी, आपको रचना ने प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ हृदय तल से आभारी हूँ. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2014 at 8:40pm

आ० ओमप्रकाश जी, रचना की सराहना के लिए बहुत- बहुत आभार.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2014 at 8:39pm

आदरणीय विजय मिश्र  जी, आपको रचना पसंद आई  --"तुमने चिंगारी क्या दिखलायी ,मैंने अपना आशियाना ही फूँक डाला |"..हाँ सही कहा आपने. जो अपनी मर्यादाओं के दायरे तोड़ते हैं उनका हश्र यही होता है बस इसी भाव को पिरोया है शब्दों में.आपका हार्दिक आभार.  

Comment by Neeraj Neer on March 12, 2014 at 8:29pm

बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 7:44pm

आदरणीया राजेश जी , सुन्दर प्रवाह मयी कविता के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ आदरणीय विजय मिश्र भाई जी से पूर्ण रूप से सहमत हूँ , पुनः बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
5 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
5 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
5 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
11 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service