हार गया समय ... !
कि जैसे अतिशय चिन्ता के कारण
आसमान काँपा
आज कुछ ज़्यादा अकेला
थपथपा रहा हूँ
कोई भीतरी सोच और
अनुभवों की द्दुतिमान मंणियाँ ...
तुम्हारी स्मृतिओं की सलवटों के बीच
मेरे स्नेह का रंग नहीं बदला
हार गया समय
समझौता करते ...
एकान्त-प्रिय निजी कोने में
दम घुटती हवा
अँधेरे का फैलाव, उस पर
कल्पना का नन्हा-सा आकाश
टंके हुए हैं वहाँ बेचैन खयालों में
धुँधले-से आकार के
पुराने परिचित रुआँसे साँवले सपने
चिर-प्रतीक्षित, कि आओगी तुम, आओगी,
हार गया समय
समझौता करते ...
अतीत के पिंजर से झाँकते
यौवन के यह साँवले सपने
आकाशी तारों-से यह आत्मा से चिपके
उन सपनों के यौवन का एहसास
महकता है लगातार, अभी भी ...
आश्चर्य ! आस्था की ढिबरी की
लो की रोशनी, मद्धम,
अग्नि-मणि-सी अभी तक टिमटिमा रही है
हार गया समय
समझौता करते ...
-------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//इसअति सुंदर रचना की भी हार्दिक बधाई॥//
आदरणीय अखिलेश जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
वर्तमान की समस्त विसंगतियों के बीच से आशाओं की निर्मल धार बहती हुई आशान्वित करती है !
शुभ-शुभ आदरणीय !
सादर
//बहुत गहरे प्रेम की अनुभूतियों को आपने लाजवाब शब्द संयोजन दिया है ॥ अति सुन्दर//
ऐसी सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय अजय शर्मा जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
//भावों का इतना सुंदर संचयन...समय तो हारेगा ही//
आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कुंती जी। ऐसे ही स्नेह बनाए रखें।
सादर,
विजय निकोर
//लाजवाब शब्दों का अनूठा संजोग पिरोया है आपने .......भावपूर्ण रचना //
ऐसे ही प्रोत्साहित करती रहें, आदरणीया प्रियंका जी। आपका आभारी हूँ।
सादर,
विजय निकोर
//गहन भावाभिव्यक्ति//
रचना के भाव-अनुमोदन के लिए आपका आभारी हूँ, आदरणीया महिमा श्री जी।
सादर,
विजय निकोर
//सुन्दर गहन प्रेम अनुभूति का प्रस्तुतिकरण हुआ है//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय स्तयनारायण सिंह जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय विजय निकोर सर वाह अत्यंत सारगर्भित रचना दिल को छू गईं पंक्तियाँ अंतिम बंद में योवन को यौवन कर लें. सादर बधाई इस सुन्दर रचना हेतु.
//एकान्त-प्रिय निजी कोने में
दम घुटती हवा
अँधेरे का फैलाव, उस पर
कल्पना का नन्हा-सा आकाश
टंके हुए हैं वहाँ बेचैन खयालों में
धुँधले-से आकार के
पुराने परिचित रुआँसे साँवले सपने//
आदरणीय विजय सर बहुत गहरी सोच है बहुधा यही कविता की आत्मा हुआ करती इस खूबसूरत रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई
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