For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुण्डलियां-1


कुत्ता प्यारा जीव है, वफादार बलवान।
घर की  नित रक्षा करे, रख पौरूष अभिमान।।
रख पौरूष अभिमान, गली का शेर कहाए।
चोर और अंजान, भाग कर जान बचाए।।
द्वार रहे गर श्वान, शान ज्यों माणिक मुक्ता।
पर मानव मक्कार, अहम वश कहता कुत्ता।।


के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 760

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 5, 2014 at 10:21pm

भाई केवल प्रसाद जी सादर, रोला वाले भाग में कुछ कमियाँ है मगर कुत्ते को कुत्ता कहने में अहम् कहाँ से आ गया यह समझ नहीं आया. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 9:03pm

जय हो.. .

:-)))

विश्वास है, जो कुछ आदरणीया प्राचीजी ने कहा है उस पर ध्यान देंगे.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 26, 2013 at 3:47pm

श्वान गुणगान करते इस कुण्डलिया छंद पर बधाई आ० केवल प्रसाद जी 

घर की रक्षा नित करे.....इस पद्यांश में गेयता बाधित है............ घर की नित रक्षा करे ...ऐसे कर के देखें 

रख पौरूष अभिमान, गली का शेर कहाए।
चोर और अंजान, भाग कर जान बचाएं।।

इन दो पंक्तियों में भी तुकांतता दुबारा गौर चाहती है...

सादर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 23, 2013 at 6:09pm

आ0 अरून अनन्त भार्इजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 1:09pm

आदरणीय केवल भाई जी बेहतरीन कुण्डलिया छंद अलग अंदाज में हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 7:41pm

आ0 अखिलेश भाई जी, आपके जीवों के लिए अपार स्नेह और प्रेम से परिपूर्ण प्रसंशनीय उदगार हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 7:40pm

आ0 राजेश कुमारी जी, आपके जीवों के लिए अपार स्नेह और प्रेम से परिपूर्ण प्रसंशनीय उदगार हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 7:38pm

आ0  सविता  जी, आपके जीवों के लिए अपार स्नेह और प्रेम से परिपूर्ण प्रसंशनीय उदगार हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 7:38pm

आ0  भण्डारी भाई जी, आपके जीवों के लिए अपार स्नेह और प्रेम से परिपूर्ण प्रसंशनीय उदगार हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 7:37pm

आ0 श्याम नारायण  भाई जी, आपके जीवों के लिए अपार स्नेह और प्रेम से परिपूर्ण प्रसंशनीय उदगार हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service