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मेरा मन झूम राधा हो : अरुन शर्मा 'अनन्त'

भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,

मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,

लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,

यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,

ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,

खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,

बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....

मौलिक व अप्रकाशित ..

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 11:41am

हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश सर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 11:41am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 11:40am

आदरणीय संदीप भाई जी हार्दिक आभार आपका, आपके कहे अनुसार मतला जोड़ दिया है कृपया एक बार पुनः देखें स्नेह यूँ ही बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 11:39am

हार्दिक आभार आदरणीया सरिता जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 9:40pm

सुंदर भावों से सजी सुंदर रचना की हार्दिक बधाई अरुण भाई॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 1, 2013 at 8:54pm

आदरनीय अरुण अनंत भाई , बहुत सुन्दर रचना की है , बहुत बढ़िया भाव है !!! इस  प्रस्तुति के लिये आपको बहुत बधाई !!!!

बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....लाजवाब बात कही !!! बधाई !!! 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 8:33pm

क्या बात है अरुण भाई साहब ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब दिली दाद हाजिर है

किन्तु मतला कहाँ है भाई

उसके बिना ग़ज़ल अधूरी सी लगी हर अशआर जोरदार ................किसको कहूँ के ये अच्छा है

एक बार पुनः बहुत बहुत बधाई हो

Comment by Sarita Bhatia on December 1, 2013 at 8:29pm

वाह वाह क्या बात ! क्या बात ! क्या बात !

कृपया ध्यान दे...

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