For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-किसी के दिल से

1212 1122 1212 22  
...

किसी के दिल से, निगाहों से जो उतर जाए,
भला वो शख्स अगर जाए तो किधर जाए.
...

बहुत उड़ान ये भरता है आसमानों की,  
कोई तो चाँद के दो चार पर क़तर जाए.
...

सुलग रहे है जुदाई की आग में हम तुम,
इस आरज़ू में जले है, ज़रा निखर जाए.
...

पता नहीं हैं हुई क्या हमारी मंज़िल अब,
निकल पड़े हैं जिधर लेके रहगुज़र जाए. 
...

सँभालियेगा इसे आप अब नज़ाक़त से,
कहीं न दिल ये मेरा टूट कर बिखर जाए.
...

हुई जो आँख मेरी बंद, ‘नूर’ फैल गया,  
दिखे ख़ुदा ही मुझे अब जिधर नज़र जाए.  
......................................................
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 798

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 18, 2013 at 9:14pm

//बहुत उड़ान ये भरता है आसमानों की,  
कोई तो चाँद के दो चार पर क़तर जाए.//

वाह वाह, बढ़िया शेर, बढ़िया कहन है । अच्छी ग़ज़लकी प्रस्तुति हुई है । बधाई स्वीकार करें आदरणीय । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 18, 2013 at 7:20pm

आदरणीय बहुत खूब कहा है , बहुत उम्दा ग़ज़ल है 

बधाई इसके लिए कई बार पढ़ा 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 18, 2013 at 5:24pm

सँभालियेगा इसे आप अब नज़ाक़त से, 
कहीं न दिल ये मेरा टूट कर बिखर जाए.
...

हुई जो आँख मेरी बंद, ‘नूर’ फैल गया,  
दिखे ख़ुदा ही मुझे अब जिधर नज़र जाए....आदरणीय नूर जी आप सतत उम्दा ग़ज़लें लिख रहे हैं ..एक से बढ़कर एक ..इस ग़ज़ल के ये दो शेर मुझे बेहद पसंद आये .जाए के मामले में समझ तो नहीं प् रहा हूँ ..रदीफ़ जाए के मामले में पढ़ते समय अलग अलग सा लग रहा है ..बहुत भली भाँती इस फर्क को महसूस नहीं कर पा रहा हूँ . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 18, 2013 at 4:39pm

आदरणीय निलेश भाई बहुत खूबसूरत उस्तादाना ग़ज़ल है, मतले शुरू हुआ मक्ते पे जाके रुका, वाह वाह वाह दिली दाद कुबूल करेंl


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 3:13pm
आदरणीय नीलेश भाई, बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , बहुत खूब सूरत शे र कहे है!!!!! आपको हार्दिक बधई !!!!
किसी के दिल से, निगाहों से जो उतर जाए,
भला वो शख्स अगर जाए तो किधर जाए.- लाजवाब मतला के लिये बधाई !!!

ज़रा निखर जाए -को सुधार कर- ज़रा सुधर जाएँ , कर लीजियेगा , उला में बात बहुवचन में है अतः सानी भी बहु वचन मे होना चाहिये !!!!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:26pm

चाँद के पर कतरने कि कुव्वत तो बस आपके ही पास है  i आदाब नूर भाई i

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 18, 2013 at 12:20pm
सुन्दर वाहह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service