बताया जा रहा हमें
समझाया जा रहा हमें
कि हम हैं कितने महत्वपूर्ण
लोकतंत्र के इस महा-पर्व में
कितनी महती भूमिका है हमारी
ई वी एम के पटल पर
हमारी एक ऊँगली के
ज़रा से दबाव से
बदल सकती है उनकी किस्मत
कि हमें ही लिखनी है
किस्मत उनकी
इसका मतलब
हम भगवान् हो गए.....
वे बड़ी उम्मीदें लेकर
आते हमारे दरवाज़े
उनके चेहरे पर
तैरती रहती है एक याचक सी
क्षुद्र दीनता...
वो झिझकते हैं
सकुचाते हैं
गिड़गिडाते हैं
रिरियाते हैं
एकदम मासूम और मजबूर दिखने का
सफल अभिनय करते हैं
हम उनके फरेब को समझते हैं
और एक दिन उनकी झोली में
डाल आते हैं...
एक अदद वोट.....
फिर उसके बाद वे कृतघ्न भक्त
अपने भाग्य-निर्माताओं को
अपने भगवानों को
भूल जाते हैं....
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
सार्थक अभिव्यक्ति आदरणीय अनवर सुहैल जी
हार्दिक बधाई प्रस्तुति पर
आदरणीय अनवर सुहैल साहब, इस स्पष्ट कविता के लिए बारम्बार बधाइयाँ. लोकतन्त्र का आईना कुछ इस कदर दरक गया है कि अभिव्यक्तियों और अपेक्षाओं के सारे बिम्ब टुकड़ों में नज़र आते हैं.
पुनः बधाई इस कविता केलिए.
सादर
सटीक कटाक्ष , बधाई की पात्र है ये अभिव्यक्ति और आप दोनों
मोहतरम जनाब अनवर साहब सच्चाई बयाँ करती इस रचना के लिये दाद कुबूल करें
एकदम सत्य सटीक अभिव्यक्ति आदरणीय बिलकुल ऐसा ही होता है
सुंदर प्रस्तुति ...शब्दों में निहित सत्य और दिल की पीड़ा को संजोये एक अच्छी प्रस्तुति ..सादर
कि हमें ही लिखनी है
किस्मत उनकी
इसका मतलब
हम भगवान् हो गए.........शायद ! इसी ग़लतफ़हमी में कई मतदाता, अपना कीमती मत, भक्त को दे देते होंगें
एकदम मासूम और मजबूर दिखने का
सफल अभिनय करते हैं ............आपकी.यह तो बहुत ही गहरी व् अनुभव से भरी दृष्टी का कमाल है,
तत्पश्चात ५ वर्षों तक, मतदाता भक्त बनकर, अपने भगवान को ढूंढता रह जाता है, नेताओं पर बहुत सटीक प्रहार करती रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब
सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति है आ0 अनवर भाई...... राजनितिज्ञों पर करारा प्रहार...... जो अपना काम निकल जाने के बाद आम जनता को भूल जाते हैं....... बहुत बहुत बधाई इस रचना हेतु....
मित्र
हाँ यही मैं भूल हर बार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ
पर नहीं होती उनसे कभी भी भूल
जीतकर वे हमेशा हमें देते शूल
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