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कोई सपना भटक रहा है मेरी आँखों में.............

कोई सपना भटक रहा है मेरी आँखों में

पल पल चन्दन महक रहा है मेरी आँखों में

दरिया, नदिया, ताल नहर सब भीगे भीगे है

कब से बादल लहक रहा है मेरी आँखों में

पल भर बतियाता है फिर ओझल हो जाता हैं

किसका चेहरा झलक रहा है मेरी आँखों में

गालिब, की ग़ज़लों सी नाजुक एक कली को देख

कोई हिरना फुदक रहा है मेरी आँखों में

एक ग़ज़ल बातें करती है टुकड़ों में मुझसे

तन्हा मिसरा फटक रहा है मेरी आँखों में

#अमितेष 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 5:00am

बहुत सुंदर गज़ल कही है आ0 अमितेष भाई जी..... बहुत बहुत बधाई....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2013 at 1:09am

दरिया, नदिया, ताल नहर सब भीगे भीगे है

कब से बादल लहक रहा है मेरी आँखों में

एक ग़ज़ल बातें करती है टुकड़ों में मुझसे

तन्हा मिसरा फटक रहा है मेरी आँखों में

फेलुन फेलुन..फ़ा  पर बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है, अमितेष भाई.  बधाई..

Comment by Meena Pathak on November 13, 2013 at 5:16pm

बहुत सुन्दर बधाई | सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 13, 2013 at 4:56pm

वाह अमितेष भाई वाह बहुत ही खूबसूरत अशआर क्या कहने बहुत बहुत बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2013 at 12:06pm

अमितेश जी ..बेहद शानदार इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2013 at 8:25am

वाह  .., बहुत ख़ूबसूरत ज़मीन चुनी है.... बहुत खूब ........अच्छे अशआर हुए हैं

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 12, 2013 at 2:21pm

वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई है वाह

दरिया, नदिया, ताल नहर सब भीगे भीगे है

कब से बादल लहक रहा है मेरी आँखों में

वाह बधाई स्वीकारिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 2:04pm

आदरणीय अमितेश भाई , लाजवाब गज़ल कही है आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2013 at 12:13pm

तेरी आँखों की  मस्ती के मस्ताने हजारो है           कोशिश जारी रहे

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