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सार्थक दशहरा (कविता)-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

सार्थक दशहरा

***************

धर्म की विजय हुई त्रेता में, राम ने मारा रावण को।

उसकी याद में हमने भी, हर साल जलाया रावण को॥                                 

कलियुग में मायावी रावण, रूप बदलकर आता है।              

वो भ्रष्टाचारी,  अत्याचारी,  अनाचारी कहलाता है॥          

अधर्मी रावण का पुतला, हर बरस जलाया जाता है।        

कई रूप में अंदर बैठा रावण, हँसता है, मुस्काता है॥              

अपने अंदर के रावण को , आओ, पहले जलायें हम।            

फिर कंधे में बिठा बच्चे को, रावण दहन दिखायें हम॥

****************************************************

-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी ( छत्तीसगढ़ )

मौलिक- अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 3:08pm

आदरणीय अखिलेश जी ..बिलकुल सही सन्देश देती शानदार रचना ..दशहरे की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..और रचना पर हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2013 at 1:09pm

अपने अंदर के रावण को , आओ, पहले जलायें हम।            

फिर कंधे में बिठा बच्चे को, रावण दहन दिखायें हम॥

सच! हर वर्ष रावन जलाने से, कुछ नही होगा, बहुत सार्थक सन्देशप्रद रचना, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अखिलेश जी


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Comment by गिरिराज भंडारी on October 14, 2013 at 12:55pm

आदरणीय बडे भाई , बहुत सही, बहुत सटीक बात कही है आपने , आपको बधाई !!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 14, 2013 at 12:44pm

वाह आदरणीय सत्य सटीक सुन्दर विचारणीय संदेशात्मक प्रस्तुति सत्यता को सुन्दरता से दर्शाया है आपने. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 14, 2013 at 11:48am

आदरणीय  भाई  जी , बहुत बढ़िया कविता  है आपकी । सच मुच , हर साल रावण मारने के बाद भी अन्दर का रावण नहीं मरता । जिसे मारने की जरूरत पहले है । कविता  का हर पद प्रशंशनीय है ।  बहुत बहुत बधाई आपको । 

 

Comment by Shyam Narain Verma on October 14, 2013 at 10:51am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

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