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क्यों बे साले तेरी ये मजाल ... दो टके का मजदूर हो के मुझसे ज़बान लड़ाता है !

साहेब, गरियाते काहे हैं, मजदूर तो आपौ हैं  

क्या बकता है हरामखोsss

माई बाप ... पिछले हफ्ता एक मई का आपै तो कहे रहेन ,,, "हम सब मजदूर हैं"  

(मौलिक व अप्रकाशित) 

 

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Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 13, 2013 at 8:52pm

सुन्दर कटाक्ष

Comment by Meena Pathak on October 13, 2013 at 7:14pm

बहुत सुन्दर लघुकथा .. बधाई आप को आदरणीय 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2013 at 7:02pm

वीनस भाई, बहुत ही बारीकी से आपने इस लघुकथा को सृजित किया है, बहुत सुन्दर,कम शब्दों में लघुकथा में अपने जान डाल दी है बहुत बहुत बधाई ।  

Comment by वेदिका on October 13, 2013 at 6:29pm

वाह मासूमियत ने सच बुलवा दिया| खूब रही|

आपकी रचना लघुकथा मे पहली बार ही पढ़ रही हूँ, उस पे भी इतना खतरनाक पंच| भाई वाह!!

शुभकामनायें प्रेषित है !!   

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 5:28pm

पहली बार आपकी लघु कथा पढ़ी ..वाकई गागर में सागर ..शेर की खाल ओढने वाले सियारों के गाल पर करारा तमाचा .सादर बधाई के साथ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 13, 2013 at 4:01pm

आदरणीय वीनस भाई जी वाह आपके द्वारा रचित लघुकथा पहली बार पढ़ रहा हूँ बहुत ही सटीक सशक्त लघुकथा है थोड़े में ही बहुत कुछ दर्शा दिया है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 13, 2013 at 3:54pm

आदरणीय वीनस भाई , !!! सशक्त लघु कथा  !!!! लेबर यूनियन के नेताओं की सच्चाई के बहुत अच्छे से बयान किया है आपने !!!! 

!!!!! आपको हार्दिक  बधाई !!!!!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 13, 2013 at 3:17pm

बहुत खूब !!  :)

Comment by Abhinav Arun on October 13, 2013 at 3:09pm

...अरे वाह ! अब ये रूप भी ? :-) क्या कहने ..सामयिक सशक्त सटीक ..बधाई और शुभकामनायें आ. श्री वीनस जी !!

Comment by शकील समर on October 13, 2013 at 2:22pm

सर आपने तो 44 शब्दों में 24 कैरेट की बात कह दी।

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