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बहती हैं कश्तियाँ लहरों में
या उन्हें चीर के चली जाती हैं
या किनारे पे खड़ी खड़ी
अकेली मुस्कराती हैं

काश कोई बता देता मुझको
कि ये लहरें कहाँ पे जाती हैं
बहाती हुई ये अपने संग सबकुछ
किनारे पर ही क्यों ले आती हैं

लड़ता हूँ जब थक कर में
लहरों कि इन लपटों से
तब ये क्यों तट पर आते ही
खुद ही ठंडी हो जाती हैं

किनारे पे है अंत इनका
किनारे से प्रारंभ है
काश कोई बता देता मझको
के ये बहती हैं या बहाती हैं

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Comment

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Comment by Bhasker Agrawal on January 14, 2011 at 9:59am
आभार राजू जी
Comment by Raju on January 13, 2011 at 8:13pm
wah bahut hi badhiya kavita hai Bhaskar jee.......... bahut bahut dhanywaad.

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