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गज़ल -साँस लेने में दखल देता है

2 1 2 2  1 1 2 2   2 2

वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है

जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है

राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है

मैं  उसे रोज़ दुवायें देती
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है


उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by MAHIMA SHREE on October 10, 2013 at 10:45pm

वाह शानदार .. बधाई आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 5:10pm

वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

मैं  उसे रोज़ दुवायें देती  ( मैं उसे रोज दुआ देती हूँ यदि ऐसा कहें तो)
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है

Comment by Abhinav Arun on October 10, 2013 at 6:24am

मैं  उसे रोज़ दुवायें देती

वो मुझे रोज़ अज़ल देता है

              ...सुन्दर शेरो से सजी सशक्त ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको !!

Comment by वेदिका on October 10, 2013 at 12:39am

उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है,,,, वाह वाह वाह

दिली दाद संजु जी!

Comment by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 10:44pm

आ0 संजु जी बहुत बढ़िया गजल हुई है बहुत बधाई स्वीकारें ॰

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 9:14pm

राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है....... वाह वाह.... क्या खूब कहा.... बधाई आदरणीया संजू जी.....

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 9, 2013 at 8:34pm

 आदरणीया संजू जी,    वाह!    बहुत खूब...! बधार्इ स्वीकारें।  सादर"


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 9, 2013 at 2:10pm

आदरणीय संजू जी बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने , बहुत बहुत बधाई !!!!

जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है ---------- वाह वा !!!! दाद कुबूल करें!!!!

  ( चौथे शेर का अर्थ स्पष्ट नही है )

Comment by vijay nikore on October 9, 2013 at 1:36pm

बहुत सुन्दर भाव हैं, बधाई आदरणीया संजू जी।

 

Comment by coontee mukerji on October 9, 2013 at 12:23pm

बहुत सुन्दर.

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