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खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं



1 2 2 2    1 2 2 2    1 2 2 2    1 2 2 2

हुए रुखसत दिले -नादां  की ही  कुछ सिसकियाँ भी थी
खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं

लहर तडपी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल
ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ  भी थीं

बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से
दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं

कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को
चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं

भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे वक़्त को हमदम
नहीं भूले हैं जो अब तक, वही बेचैनियाँ भी थीं

अभी तक  याद है वो  कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी  औ दिल की कुछ  मजबूरियाँ भी थीं

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित ji

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:20pm

आदरणीया संजु जी बहुत ही सुंदर गजल रचना के लिए बधाई आपको । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2013 at 5:36pm

आदरणीया संजू जी ..एक बिरहनी की व्यथा को उजागर करती इस शानदार ग़ज़ल का ये शेर मुझे बेहद भाया ..अभी तक  याद है वो  कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी  औ दिल की कुछ  मजबूरियाँ भी थीं,,,,आपको हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 3, 2013 at 5:29pm

अति सुन्दर ! इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई !

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 3, 2013 at 4:48pm

आदरणीया संजू जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने प्रेम विरह से ह्रदय में उत्पन्न भावों को सुन्दरता से पिरोया है आपने. मुझे भी थीं का प्रयोग खटक रहा है, भी थीं की जगह ही हैं करके पढ़ने में अधिक उचित लग रहा है ऐसा मेरा मानना है. बहरहाल प्रयास अच्छा हुआ है इस हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on October 3, 2013 at 1:15pm

कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को
चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं................बहुत सुंदर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2013 at 9:34am

संजू जी सुन्दर ग़ज़ल लिखी है कही कही सुधर की गुंजाइश है 

शिज्जू जी की बात से सहमत हूँ 

कस्तियाँ या किश्तियाँ ?

ज़माने की वहाँ कर लें अन्यथा वही के साथ किश्तियाँ उचित नहीं 

दबी ही थी जो सीने में------मेरे मन में दबी थी जो कसक की बिजलियाँ भी थी ---करके देखें बहर सही आएगी 

नज़र खामोश थे औ दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थीं ----नज़र खामोश थी फिर दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थी ---कर के देखिये 

नजर खामोश थे ठीक नहीं 

बहरहाल इस ग़ज़ल के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 3, 2013 at 8:54am

हुए रुखसत दिले -नादान की कुछ सिसकियाँ भी थी
खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं

वाह!!! बहुत खूब गज़ल है. आदरणीया बहुत-बहुत बधाई...........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 3, 2013 at 8:16am

//हुए रुखसत दिले -नादान की कुछ सिसकियाँ भी थी
खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं//


"दिले -नादान"  यहाँ आपने हर्फे इजाफत का प्रयोग किया है इसलिये दिले-नादां होगा न कि दिले-नादान

ग़ज़ल के भाव अच्छे हैं बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2013 at 7:55am

आदरणीया संजू जी , बहुत अच्छी गजल कही है आपने , बधाई !!!!

Comment by vandana on October 3, 2013 at 7:25am

वाह आदरणीया संजू जी बहुत बढ़िया 

भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे वक़्त को हमदम 
नहीं भूले हैं जो अब तक, वही बेचैनियाँ भी थीं 

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