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रूप घनाक्षरी (32 वर्ण अन्त में लघु)

दंगा करार्इये खूब, जीना सिखार्इये खूब, हर हाल में जीना है, कांटे बिछार्इये खूब।
अवसर भुनार्इये, जाति-धर्म लड़ार्इये, सौहार्द-भार्इचारा को, जिंदा जलार्इये खूब।।
गाते रहे तिमिर में, झींगुर श्वांस लय में, सर्प-बिच्छू देव सम, बाहें बढ़ार्इये खूब।
नारी दुर्गा काली सम, जया  शक्ति यशो गुन, महिषा-भस्मासुर सा, नाच दिखार्इये खूब।।

के0पी0सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 5:59pm

सुन्दर घनाक्षरी! हार्दिक बधाई केवल भाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 5:19pm

आदरणीय केवल भाई जी उम्दा भाव अच्छा सुन्दर घनाक्षरी भाई जी बधाई स्वीकारें

Comment by विजय मिश्र on October 1, 2013 at 4:46pm
केवलजी ,बहुत सुंदर भाव लिए गज़ल जैसी प्रवाह वाली आपकी यह घनाक्षरी उत्तम बनी है . साधुवाद .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 10:09am

अति सुंदर छंद रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 8:16am

आदरणीय केवल भाई , सामयिक विषय पर सुन्दर छन्द रचना , सुन्दर बात !! बहुत बधाई !!

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