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ग़ज़ल .... मयकशी मयकशी नहीं लगती !

ग़ज़ल
....

मयकशी मयकशी नहीं लगती !
रौशनी रौशनी नहीं लगती !!
.....
अब इबादत में दिल नहीं लगता !
बन्दगी बन्दगी नहीं लगती !!
......
हर तरफ भीड़ और मैं तनहा!
बेबसी बेबसी नहीं लगती !!
...
दिल में रखते हैं वोह तो दिल कितने !
आशिकी आशिकी नहीं लगती !!
...
गुफ़्तगू आप से करें कैसे !
आपको तो  कमी नहीं लगती
....
हैं खफा वोह अगर खफा हम है !
दोसती दोसती नहीं लगती !!
....
चाँद तारों के साथ चलता हूँ !
तो सफर में कमी नहीं लगती !!
...
साँस लेता हूँ अब हवा के लिए ,
ख़ुदकुशी ख़ुदकुशी नहीं लगती !!
....


राज लाली शर्मा (बटाला)

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1044

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2013 at 8:27am

बढ़िया वाह खूब निभाया है आपने बधाई इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 4:05am

सानी में शानदार तवस्सुफ़ का नजारा पेश किया है उला से आप अशआर को निभा ले गए हैं
ढेरो दाद

Comment by Abhinav Arun on September 26, 2013 at 3:50am

दिल में रखते हैं वोह तो दिल कितने !
आशिकी आशिकी नहीं लगती !!
...
गुफ़्तगू हम से अब नहीं होगी ,
आपको भी कमी नहीं लगती !!

             ..अच्छे अश'आर कहे हैं आनंदित हूँ हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल के लिए

!

Comment by वेदिका on September 26, 2013 at 12:00am

बढ़िया गज़ल!! बधाई स्वीकारें !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2013 at 10:06pm

बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है दाद कबूल कीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2013 at 9:53pm

आदरणीय राज लाली जी , बहुत ही उम्दा गज़ल हुई है , बहुत बधाई !!

अब इबादत में दिल नहीं लगता !
बन्दगी बन्दगी नहीं लगती !! ------------ इस शेर के लिये दाद कुबूल कीजिये !!

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