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ग़ज़ल : दिल हो गया है जब से टूटा हुआ खिलौना

बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२

 

दिल हो गया है जब से टूटा हुआ खिलौना

दुनिया लगे है तब से टूटा हुआ खिलौना

 

खेले न कोई इससे, फेंके न कोई इसको

यूँ ही पड़ा है कब से टूटा हुआ खिलौना

 

बेटा बड़ा हुआ तो यूँ चूमता हूँ उसको

अक्सर लगाऊँ लब से टूटा हुआ खिलौना

 

बच्चा गरीब का है रक्खेगा ये सँजोकर

देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना

 

‘सज्जन’ कहे यकीनन होंगे अनाथ बच्चे

जो माँगते हैं रब से टूटा हुआ खिलौना

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on September 19, 2013 at 8:59pm

बेटा बड़ा हुआ तो यूँ चूमता हूँ उसको

अक्सर लगाऊँ लब से टूटा हुआ खिलौना

 

बच्चा गरीब का है रक्खेगा ये सँजोकर

देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना.... वाह बहुत ही उच्च भाव पिरोये है आदरणीय अपनी प्रस्तुति में बहुत खूब बधाई आपको ..

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on September 19, 2013 at 8:27pm

धर्मेंद्र जी एक खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद कुबूल करें! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2013 at 8:16pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, कमाल कर दिया है, रदीफ़ देखकर उत्सुकता हुई कि इसे निभाया कैसे गया होगा, किन्तु बड़ी खूबसूरती से आपने ग़ज़ल को निर्वाह कर गये हैं, बहुत बहुत बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 19, 2013 at 2:16pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी , बहुत खूब सूरत भाव , खूबसूरती से गज़ल मे समेटा है आपने !!! वाह !! बहुत बधाई !!

Comment by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 2:03pm

बच्चा गरीब का है रक्खेगा ये सँजोकर

देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना

 

‘सज्जन’ कहे यकीनन होंगे अनाथ बच्चे

जो माँगते हैं रब से टूटा हुआ खिलौना

           ......पूरी ग़ज़ल बहुत मर्मस्पर्शी है ...पर इन दो शेरो पर सौ सौ सदके आ.धर्मेन्द्र जी ... आपने करोड़ों के दर्द को समेटा है... जीया है ...प्रस्तुत किया है.... नमन वंदन सादर !!

Comment by annapurna bajpai on September 19, 2013 at 1:59pm
बच्चा गरीब का है रक्खेगा ये सँजोकर
देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना ...................... बहुत बढ़िया भाव , आपको बधाई आ0 धर्मेद्र जी इस सुंदर गजल के लिए ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 19, 2013 at 10:57am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी आपकी रचनाये सामयिक होती हैं और बहुत खूबसूरती से अपनी बात कहते हैं इस ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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