For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पराया घर - ( लघु कथा )

“दादी ये पराया घर क्या  होता है ?” नन्ही जूही ने मचलते हुए दादी से पूछा । दादी ने प्यार से समझते हुए कहा “जब तुम बड़ी हो जाओगी खूब पढ़ लिख जाओगी तब हम तुम्हारा ब्याह एक अच्छे से राजकुमार से कर देंगे वो तुम्हें अपने घर ले जाएगा, उसी को कहते है पराया घर ।” उसने पूछा - " तो दादी जैसे आप भी पराए घर मे हो और माँ भी । बुआ को भी आपने पराये घर भेज दिया ।” दादी ने स्वीकृति मे सिर हिला दिया । उसकी उत्सुकता शांत नहीं हुई थी उसने फिर पूछा - “क्या  भैया भी पराए घर जाएगा ,  दादा जी भी गए थे और पापा भी गए थे ।” दादी बोली – “ धत् ! पगली कहीं की , केवल लड़कियां ही जाती है लड़कों का अपना घर  होता है वे तो ब्याह के पराये घर की लड़की लाते है और फिर वो लड़की हमेशा उसी घर मे रहती है  ।” “ क्यों क्या लड़कियों के पास अपना  घर नहीं होता जो उन्हे पराए घर मे भेज दिया जाता है , क्या मुझे भी भेज दोगी ?” नन्ही जूही ने फिर दागा । अब दादी निरुत्तर थी । 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1103

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on September 26, 2013 at 5:11pm

आदरणीय शुभ्रांशु पांडे जी अपने सही कहा ।  वैसे भी  नेट की कनेक्टिविटी तो आजकल मनमोहन की सरकार  की तरह है । 

Comment by annapurna bajpai on September 26, 2013 at 5:09pm

आदरणीय कुशवाहा जी ये ही विडिम्बना है इस मानसिकता को ही बदलने की आवश्यकता है । आपाक आभार । 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 26, 2013 at 3:53pm

घर तो बसाती  हैं पर घर उनका नही कहलाता 

Comment by Shubhranshu Pandey on September 17, 2013 at 5:08pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, बहुत सही कहा आपने...दरसल कभी कभी नेट के झमेले में विचारों से ज्यादा नेट की कनेक्टिविटि के साथ दो चार होना पड़ता है और कई बार के बाद जब विचार पोस्ट होता है तो शब्द क्या पूरी लाइन ही उड़ जाती है......

सादर

Comment by annapurna bajpai on September 17, 2013 at 1:38pm

आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डे जी लड़कियों को जन्म के बाद नहीं , विवाह के बाद पराये घर जाना ही होता है यही नियम है । बाकी तो बच्चे की कोमल भावनाएं जिधर चाहे जैसे चाहे मोड कर रुख दे दिया जाय ये निर्भर करता है समझाने वाले पर ।
आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Shubhranshu Pandey on September 17, 2013 at 1:19pm

आदरणीया अन्न्पूर्णा जी,  

जन्म के बाद लड़कियों को दूसरे के घर जाना ही रहता है. ये एक परिपाटी है, जिसका पालन सभी करते हैं.ये एक समस्या पूर्ति की तरह होता है. एक महिला ही होती है जो इस पराया घर को अपना कर, अपना घर बना लेती है. उसका अपना घर.

अगर औरतों में, इस पराया घर की धारणा केवल पराया घर ही रह गयी या केवल मेरा-अपना, इसका-उसका बन जाता है तो उसी वक्त से पारिवारिक समस्यायें अपना मुँह उठाने लगती हैं.

आज समाज बदल गया है जहाँ समस्या के हिसाब से भी महिलायें अपने माँ पिता को विवाह के बाद साथ रखती हैं.

लेकिन ये बात तो सबसे पहले अभिभावकों का है कि उस पराया घर के किस रुप को किसी बच्ची के मन में डालते हैं.

सादर.

  

Comment by annapurna bajpai on September 5, 2013 at 12:52pm

आदरणीय जितेंद्र जी आपका आभार । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 3:05am

 छोटे बच्चों के सवालों का जबाव,कभी कभी बड़ों के पास नही होता है, बहुत ही सुंदर लघुकथा , बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 9:57pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी । 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 4, 2013 at 9:08pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी ..माह के सक्रिय सदस्य चुने जाने पर ढेर सारी बधाई ....प्रभु से कामना है कि ब्लागिंग के हर क्षेत्र में आप यों ही सक्रिय रहें और समाज रोशन हो
जय श्री राधे
भ्रमर ५

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service