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पानी की बूँदें...

बरसे बदरा नीर बहाये

ज्यों गोरी घूँघट शरमाये

चाल चले ऐसी मस्तानी

ज्यूँ बह चली पुरवा रानी

बादल गरजे प्रेमी तड़पे

झलक तेरी को गोरी तरसे

आजा अंगना दरस दिखा जा

नयन मेरे तू शीतल कर दे

ज्यूँ घटा का रूप लेके

यूँ लटें चेहरे पर छाई

मोती सी पानी की बूंदें

छलक रही चेहरे पर ऐसे

स्पर्श तेरा स्वर्णिम पाने को

पानी की बूँदें भी तरसे.

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2013 at 9:37am

आदरणीया आरती जी 

सच कहूँ तो सिर्फ शाब्दिकता और बिखरा बिखरा भाव समायोजन लगा इस रचना में.

कथ्य विन्यास और बिम्ब भी बेतुके से लगे 

अब देखिये

बरसे बदरा नीर बहाये

ज्यों गोरी घूँघट शरमाये...........इन दो पंक्तियों में ढूंढे से भी कोई समानता नहीं मिल रही मुझे 

यह तो स्पष्ट होना ही चाहिये कि कुछ भावों की तुकबंदी मात्र को पेश कर देना..रचनाकर्म कतई नहीं कहलाता.

शुभकामनाएँ 

Comment by Aarti Sharma on July 22, 2013 at 11:29pm

आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय  JAWAHAR LAL SINGH सर...आभार...

Comment by Aarti Sharma on July 22, 2013 at 11:26pm

आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय जितेन्द्र जीत जी ..आभार..

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2013 at 9:44pm

मोती सी पानी की बूंदें

छलक रही चेहरे पर ऐसे

स्पर्श तेरा स्वर्णिम पाने को

पानी की बूँदें भी तरसे.

बहुत ही सुन्दर भाव और शब्द समन्वय!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 19, 2013 at 4:52pm

आदरणीया..आरती जी, सुंदर रचना पर आपको हार्दिक बधाई

Comment by Aarti Sharma on July 19, 2013 at 4:11pm

आपका  तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय श्याम जी..

Comment by Aarti Sharma on July 19, 2013 at 4:11pm

होस्लाफ्ज़ाही के लिए तहेदिल से शुक्रिया प्रिय वेदिका जी...

Comment by Aarti Sharma on July 19, 2013 at 4:09pm

आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश मैम ...आभार 

Comment by Aarti Sharma on July 19, 2013 at 4:08pm

त्रुटी पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया आदरणीया अन्नपूरना  जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 19, 2013 at 4:06pm

प्यारी सी  रचना बधाई आरती जी 

कृपया ध्यान दे...

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