जाने क्यो उदास है
मेरा मन
जाने क्यों निराश है
मेरा मन
जाने क्यों हताश है
मेरा मन
अधरों से फूटते नही बोल
घुटन सी होती है इस मन में
चुभन सी होती है इस तन में
चंचलता से भरा मेरा मन
जाने क्यों उदास है
लगता है ऐसे कोई नही
अपना आस-पास है
अपनों को खोजता ये मन
लिए तड़पन, लिए लगन
आँसूओं की धारा में
गुम-सुम हुआ मेरा मन
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मन में अंतर्द्वंद की सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
मन में सदैव रहते द्वंद्व और घुटन का अच्छा चित्रण किया है।
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
A soothing creation ! well written
अधरों से फूटते नही बोल
घुटन सी होती है इस मन में
चुभन सी होती है इस तन में
चंचलता से भरा मेरा मन
जाने क्यों उदास है
लगता है ऐसे कोई नही
अपना आस-पास है
अपनों को खोजता ये मन.......कहते हैं मन को जब तक उसका जूड़वाँ साथी नहीं मिल जाता वह इसी तरह भटकता रहता है.
बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना..........................
रविकर जी,.....शुक्रिया
श्रीराम जी,......शुक्रिया
जितेंद्र जी,...शुक्रिया
रामकुमार जी ,..........शुक्रिया
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