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एक तल्ले पे था चाँद तो उन दिनों

पर कटे से पड़े तडफडाते रहे 

इश्क़ में उनके ऐसे फँसे दोस्तोँ !

 

रूबरू वो हुये चार पल के लिए 

जाम नैनों अधर के पिला दोस्तों !

 

मयकशी में मुकद्दर के मारे तभी 

लूट हँसते चले रोते हम दोस्तों !

 

मुड़  के देखे कभी दिल को छलनी किये 

पैठ दिल में बना वो गए दोस्तों !

 

पंछी उड़ता रहा दाना चुगता रहा 

हम ठगे से खड़े देखते दोस्तों !

 

एक तल्ले पे था चाँद तो उन दिनों 

सौ अटारी चढ़ा अब लगे दोस्तों !

 

दिन में दिखता  नहीं रात अठखेलियाँ 

बादलों को खिलौना बना दोस्तों !

 

मुझसे बादल कई छू गये ख्वाब ले 

अपनी हस्ती मिटा खो गए दोस्तों !

 

चाँद पूरा कभी ये अधूरा करे 

रौशनी कर अमावस दिखा दोस्तों !

 

हम भी सूरज थे कल आज जुगनू बने 

खुश मगर चाँद दिखता  तो  है दोस्तों !

 

हूँ  'भ्रमर' पर-कटा कैद उनकी पडा 

इश्क काँटों में खुशबू भी है दोस्तों ! 

 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५ 

कुल्लू हि प्र. 

८ जून 2 0 1 3 -12 .39 पूर्वाह्ण  

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 24, 2013 at 10:56pm

आप समुद्र से सीपी निकल लेते हो,  गगन से चाँद उतार लेते हो!

प्रिय जवाहर भाई  जी  हीरे जवाहर के साथ रह के इतना भी नहीं कर पाए तो क्या मजा आये जय श्री राधे अपना स्नेह यों ही प्रदान करते रहें ताकि हम कुछ कभी तो गढ़ते रहें  रचना आप के मन को छू सकी  ख़ुशी हुयी आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 24, 2013 at 10:54pm

प्रिय विजय मिश्र  जी जय श्री राधे प्रेम में कुर्बान हो के तो आनंद और आता ही है रचना आप के मन को छू सकी  ख़ुशी हुयी आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 24, 2013 at 10:53pm

आदरणीय वृजेश नीरज जी रचना आप के मन को छू सकी आप ने कविता में गजल का आनंद लिए ख़ुशी हुयी आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 12, 2013 at 9:40pm

आदरणीय भ्रमर जी, सादर अभिवादन !

आप समुद्र से सीपी निकल लेते हो,  गगन से चाँद उतार लेते हो!
शब्दों की कैसी  बाजीगरी, फूल को कागज पे उतार लेते हो! 
Comment by विजय मिश्र on June 12, 2013 at 5:36pm

हम भी सूरज थे कल आज जुगनू बने 

  खुश मगर चाँद दिखता  तो  है दोस्तों !"  ---- बहुत अच्छी लगी , अपने कद को सूरज से जुगनू करके भी चाँद के ख़ुशी में तसल्ली और ख़ुशी .

Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 7:33am

आदरणीय बहुत ही सुन्दर! कविता में गजल का मजा। वाह! क्या बात है। मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 11, 2013 at 10:50pm

प्रिय जितेन्द्र जी

रूबरू वो हुऐ चार पल के लिए, जाम नैनों अधर के पिला दोस्तों!

रचना की ये पंक्तियाँ आप के मन को छू सकीं सुन ख़ुशी हुयी ..ये अक्सर देखने को मिलता भी है - प्रोत्साहन के लिए आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 11, 2013 at 10:48pm

प्रिय अमन जी रचना आप को अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ प्रोत्साहन के लिए आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 10, 2013 at 6:25pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, बहुत खूब कहा आपने.."रूबरू वो हुऐ चार पल के लिए, जाम नैनों अधर के पिला दोस्तों! मयकशी मे मुकद्दर के मारे तभी, लूट हँसते चले रोते हम दोस्तों! मुड़ के देखे कभी दिल को छलनी किऐ, पैठ दिल में बना वो गए दोस्तों!....उम्दा रचना ...आदरणीय शुभकामनाऐं...
Comment by aman kumar on June 10, 2013 at 5:09pm

सुंदर रचना बधाई

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