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आज बढ़ सकते हैं दाम

हाय राम, आम तो आम

बढ़ सकते हैं गुठलियों के भी दाम

ये महँगाई सुरसा के मुहँ की तरह

बढ़ती ही जा रही है

अपनी हरकतों से बाज नही आ रही है

सरकारी नीति यही समझा रही है

जनसंख्या वृद्धि को रोकने मे

महँगाई बहुत बढ़ी भूमिका निभा रही है

भूखे मरेंगे लोग

तरसेगें पीने के लिए जल

आज नही तो कल

जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या का

अपने आप निकल जाएगा हल

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 8, 2013 at 10:09am

अच्छा प्रयास, करत करत अभ्यास के -------बधाई 

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 6:51pm
स्नेही प्रज्ञा जी! 
आप में अच्छे लेखन की सम्भावनाये है। अतुकांत भी लिखे तो उसके नियम के अनुरूप लिखने से आपकी रचना में  प्रभाव-उत्पादकता बढ़ेगी। 
आप जिस मंच पर है वहाँ अतुकांत शैली के ज्ञाता आदरणीय सौरभ जी है। उनसे मार्ग दर्शन लीजिये। 
सादर!     
Comment by Pragya Srivastava on June 7, 2013 at 6:30pm

गीतिका वेदिका जी आपके विचारों का आदर करतीहूँ

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 3:08pm
सुंदर भाव पिरोये गये है ...किन्तु समझ नही आ रहा की किस शैली में रचना है?
पंक्ति के दुहराव से बचें, 
तारतम्यता भंग न होने पाए पाठक की, रचना पढ़ते समय। 
सादर!    
Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 2:59pm

इस गद्य को आपने कविता की तरह क्यों पोस्ट किया है?
मुझे यदि मार्गदर्शन दे सकें तो आपकी बहुत कृपा होगी।
सादर!

Comment by ram shiromani pathak on June 7, 2013 at 2:42pm

प्रज्ञा जी बहुत सुन्दर बधाई स्वीकार करें////टीवी पर ऐड देखता हूँ  कंपनी वाले बिन मौसम भी आम देने का दावा करते है ///शायद उसमे गुठलियाँ नहीं होती ///हा हा हा हा 

Comment by Pragya Srivastava on June 7, 2013 at 11:54am

धन्यवाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 11:52am
आदरणीया...सचमुच मंहगाई ने कमर तोड़ के रख दी है! बहुत खूब लिखा आपने इस बड़ी समस्या को, कम ही पंक्तियों में...हार्दिक शुभकामनाऐं स्वीकार करें...
Comment by Shyam Narain Verma on June 7, 2013 at 10:16am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by रविकर on June 7, 2013 at 10:04am

बढ़िया-

आभार आदरेया-

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