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हार जीत का खेल अजब है , यारों निराश ना होना |
मेहनत से कभी  ना डरना ,  देखो  साहस ना खोना | 
बिना पसीना खेती ना हो ,  फिर बदले मौसम का रोना | 
बिना पसीना खेती ना हो ,  खराब  मौसम का रोना | 
अगर हाथ पाँव ना चलाओ , भूखे ही पडेगा सोना |
भाग्य सहारे सोच रहोगे , अपने ही पछताओगे | 
बबूल का जब झाड लगाया ,  आम कहाँ से पाओगे | 
नदी में तैरना ना आये , पार कहाँ से जाओगे |
खेत में कुछ बोया ही नही , फसल देख पछताओगे |
कोई पौधा अगर लगाया , कोई पशु चर सकता है |
कब तक रहो वर्षा सहारे , जल की आवश्यकता है |
काम आसान हो जाता है , जब कोई कर सकता है |
दिन पर दिन टाला ही जाये , फिर पहाड़ सा लगता है |
मंजिल की अगर जब चाह हो , मेहनत लगन जरूरी है |
जब चाह हो पर लगन ना हो , दूर  मंजिल अधूरी है |
सब को मंजिल की चाहत है , पर  मिलना मजबूरी है |
वर्मा बिना मेहनत  के भैया , देख ! इच्छा ना पूरी है |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2013 at 6:17am

भावाभिव्यक्ति हेतु बधाइयाँ, श्याम नारायण जी.

इस भाव-भिव्यक्ति को और सुगढ़ रचना करने का प्रयास उचित होगा. आपकी कई रचनाएँ मंच पर प्रस्तुत हो चुकी हैं. आप रचनाकर्म के प्रति सचेष्ठ हों. 

शुभेच्छाएँ

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 11:28pm

आदरणीय आपका प्रयास अच्छा है। आपको बधाई!
रचना पोस्ट करते समय यदि विधा का उल्लेख कर दिया करें तो पाठक के लिए अच्छा होगा।
सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 6, 2013 at 10:08am
आदरणीय श्याम जी, आपने अपनी पंक्तियों मे "मेहनत "के बारे मे सही कहा है.. "बबूल का जब झाड़ लगाया आम कहाँ से पाओगे, नदी मे तैरना ना आये पार कहां से जाओगे "..काम आसान हो जाता है जब कोई कर सकता है, दिन पर दिन टाला जाये फिर पहाड़ सा लगता है "...हार्दिक बधाईयां स्वीकार करें आदरणीय...
Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 6, 2013 at 9:53am

श्याम नारायण जी सुन्दर भावों को संजोये हुए अद्भुत रचना के लिए बहुत बधाई किन्तु अनेक शैल्पिक त्रुटियाँ हैं किसी वरिष्ठ को रचना लिख कर दिखा लिया जाना अपेक्षित है 

Comment by Abid ali mansoori on June 6, 2013 at 9:45am
वाह,सच कहा मेहनत के बिना आदमी कुछ भी हासिल नहीँ कर सकता,बधाई आदरणीय श्याम जी!

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