For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनो ऋतुराज!

मौसम बदलने और ईमान बदलने में फर्क होता है

ईमान बदलने और वक्त बदलने में फर्क होता है

लेकिन धरा के दरकने और ह्र्दय के दरकने में

कोई फर्क नहीं होता ..

क्योकि दोनो में निहित

एक ही कारण तत्व होता है

दहकता हुआ लावा ....

सुनो ऋतुराज!

क्योंकि तुम्हें सुनना चाहिए

उन बातों को

जो आज तुम्हारी अनगिनत

गैरजरुरी बातों का हिस्सा है

उन अजन्मी कविताओं को

जो तुम्हारे लिए महज एक किस्सा है

सुनो ऋतुराज!

तीरों से बिन्धे उस मृग की

याचना सुनो !

उसके कातर नयन बड़े ही मनभावन होते है

कस्तुरी की खातिर फिर भी जिनके वध होते हैं

निसन्देह

समन्दर के ज्वार की चाहत

नभ के दर्पण में स्वयं को निहारना नहीं होता

वह तो चन्द्रिका की सोलह कलाएं हैं

जिन्हे देख गहन गम्भीर समन्दर भी हठात आतुर हो उठता है

सुनो ऋतुराज!

वसंतोत्सव में भी

धरा का हर हिस्सा कुसुमित नहीं होता

कई बार वह दरकती है ..

लावे की शक्ल में पीड़ा उगलती है ....

 

या फिर क्षुब्ध होकर रेत बन जाती है

जिसे हम मरुभूमि कहते हैं

 

वहाँ तुम रुख नहीं करते

 

बुरा मत मानना

 

लेकिन तुम ठीक नही करते.....

Views: 449

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2013 at 11:33pm

समन्दर के ज्वार की चाहत

नभ के दर्पण में स्वयं को निहारना नहीं होता

वह तो चन्द्रिका की सोलह कलाएं हैं

जिन्हे देख गहन गम्भीर समन्दर भी हठात आतुर हो उठता है

सुनो ऋतुराज!.............बहुत सुन्दर.

आदरणीया गुल सारिका ठाकुर जी सादर, बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए सादर बधाई स्वीकार करें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 16, 2013 at 3:01pm

//

मौसम बदलने और ईमान बदलने में फर्क होता है

ईमान बदलने और वक्त बदलने में फर्क होता है ....         क्या भाव है !

 

लेकिन धरा के दरकने और ह्र्दय  के दरकने में

कोई फर्क नहीं होता

  

सत्य कहा है सटीक कहा है
किंतु कहा केवल ऋतुराज से क्यूँ है ये प्रश्न है मेरा आपसे

Comment by Gul Sarika Thakur on May 15, 2013 at 4:05pm

bahut bahut abhari hun aap sabhee kee .... utsaah wridhi ke liye tahe dil se shukragujaar hun.. yh rachndharimita me indhan kaa karya krti hai... ek baar punah ..dhanyawaad 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 15, 2013 at 3:20pm

सुन्दर भाव अभिव्यक्ति के लिए बधाई गुल सारिका जी 

Comment by ram shiromani pathak on May 15, 2013 at 2:34pm

बधाई आदरणीया बहुत ही सुन्दर।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 15, 2013 at 1:31pm

अति सुन्दर 

सादर बधाई आदरणीया जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 8:50am

आ0 गुल सारिका जी, ‘सुनो ऋतुराज!
वसंतोत्सव में भी
धरा का हर हिस्सा कुसुमित नहीं होता
कई बार वह दरकती है
लावे की शक्ल में पीड़ा उगलती है
या फिर क्षुब्ध होकर रेत बन जाती है
जिसे हम मरुभूमि कहते हैं
वहाँ तुम रुख नहीं करते।‘


         व्यथित-उपेक्षित और दलित जैसी पीड़ा!! वाह! बहुत ही सुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by vijay nikore on May 15, 2013 at 8:15am

आदरणीया गुल सारिका जी:

 

इससे पहले कई मास हुए आपकी रचना "आधी ज़मीदारी हमारी भी है" से परिचय हुआ था।

आज आपकी नई रचना पढ़ कर पुन: सुखद आभास हुआ ।

 

//

मौसम बदलने और ईमान बदलने में फर्क होता है

ईमान बदलने और वक्त बदलने में फर्क होता है ....         क्या भाव है !

 

लेकिन धरा के दरकने और ह्र्दय  के दरकने में

कोई फर्क नहीं होता ..  //   .......................................  कितना सच कहा है! ...  उफ़ !

 

 

बेहद खूबसूरत मन को हिला देने वाले ख़्याल हैं!

इस रचना की एक अपनी ही अनूठी कशिश है...

 

पढ़ता ही गया .. सराहता ही गया।

 

सादर,

वि्जय निकोर

Comment by shalini kaushik on May 15, 2013 at 1:48am

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service