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कुंडलिया छंद -लक्ष्मण लडीवाला

कुंडलिया छंद 

पत्नी लागी दाँव पर, गए युधिष्ठिर  हार,

महासमर के वार का, धर्म बना आधार |

धर्म बना आधार, द्रोपदी चीर हरण का,

कृष्ण बने मझधार, तन पर बढ़ते चीर का  

दुशासन मढ़े दोष, देखे न खुद की करनी,       , 

जोश में न खो होश ,लगा न दाँव पर पत्नी|

 

(2)

गहरा संकट चल रहा, अन्धो का है राज,

भीष्म भी खामोश रहे,बने कौन सरताज 

बने कौन सरताज,  मर्यादाए  नहि रही,

इम्तिहान है आज, लाज शर्म अब है नहीं  

दुष्कर्म की शिकार, कर से ढाँपते चेहरा,

नारी करे पुकार,  धर्म  संकट है  गहरा  |

    

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

 

    
 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 25, 2013 at 7:22pm

आपको कुंडलिया अच्छी लगी, यह जानकार प्रसन्नता है, आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

सादर, श्री हनुमान जयंती की शुभकामनाए 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 25, 2013 at 7:19pm

आपको कुंडलिया सुन्दर लगी, यह मेरा सौभाग्य है, हार्दिक आभार श्री केवल प्रसाद जी, और श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:28pm

महासमर के वार का, धर्म बना आधार |

सुंदर सामयिक रचना.

सादर  

Comment by ram shiromani pathak on April 25, 2013 at 12:23pm

सुन्दर कुण्डलिया  आदरणीय लक्ष्मण  सर ///// हार्दिक बधाई आपको 

Comment by vijay nikore on April 25, 2013 at 11:36am

आदरणीय लक्ष्मण जी:

 

आपकी कुण्डलियां अच्छी लगीं।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 10:17am

आ0 लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी, अतिसुन्दर कुण्डलियां। बहुत बहुत बधाई स्वीकारें। सादर,

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